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अचल नामक चक्रवर्ती की पत्नी हरिणी के गर्भ से पुत्र रूप में जन्म प्रहण किया। उसका नाम प्रियदर्शन रखा गया। उसकी धर्म में अभिरुचि थी। फलतः वह बाल्यकाल में ही दीक्षा लेना चाहता था; किन्त पिता की आज्ञा से तीन हजार कन्याओं के साथ उसका विवाह हुआ। सुखोपभोग करते समय भी वह संवेग से रहता था। उसने गृहवास में चौसठ हजार वर्षों तक धर्माचरण में रत रहकर मृत्यु प्राप्त की और ब्रह्म देवलोक में देव रूप में उत्पन्न हुआ।'
(श्लोक १३३-१४१) 'धन संसार भ्रमण कर पोतनपुर में अग्नि मुख नामक ब्राह्मण की पत्नी शकुन्त के गर्भ से मृदुमति नामक पुत्र रूप में जन्मा। वह अत्यन्त अविनीत था इसलिए पिता ने उसे घर से निकाल दिया। वह इधर-उधर घूमने लगा और सूयोग के अनुसार कला की शिक्षा लेने लगा। इस प्रकार समस्त कलाओं में पूर्ण और धूर्त होकर वह घर लौट आया। दयुत क्रीड़ा में वह कभी किसी से हारता नहीं था। अत: उसने इस क्रीड़ा से प्रचुर धन प्राप्त कर लिया। फिर वसन्तसेना वेश्या के साथ भोग विलास कर अन्त में दीक्षित हुआ। मृत्यु के पश्चात् वह भी ब्रह्म देवलोक में देव रूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ से च्युत होकर पूर्व भव के कपट के लिए वैताढय पर्वत पर हाथी रूप में जन्म ग्रहण किया। वही हाथी यह भुवनालङ्कार है। प्रियदर्शन का जीव ब्रह्म देवलोक से च्युत होकर तुम्हारा पराक्रमी भाई भरत हुआ है। भरत को देखकर भुवनालङ्कार को जाति स्मरण ज्ञान हो गया अतः वह उसी समय मदरहित हो गया कारण विवेक उत्पन्न होने पर रुद्रता-उग्रता नहीं रहती।' (श्लोक १४२-१४७)
इस प्रकार अपना पूर्व भव सुनकर भरत का हृदय और अधिक वैराग्यमय हो गया। उन्होंने एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा ली और तपस्या कर मोक्ष गए। अन्यान्य राजागण भी दीर्घकाल तक व्रत का पालन कर नाना प्रकार की लब्धियाँ प्राप्त की और अन्त में भरत की तरह परम पद प्राप्त किया अर्थात् मोक्ष गए। भुवनालङ्कार हस्ती भी बहुविध तपकर अन्त में अनशन मृत्यु वरण कर ब्रह्म देवलोक में देव रूप में उत्पन्न हुआ । भरतकी मां कैकेयी ने भी व्रत ग्रहण कर एवं उसका निष्कलंक पालन कर मोक्ष प्राप्त की।
(श्लोक १४२-१५२)