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212] कुछ दिन पश्चात् श्रुतिरति भी मर गया । बहुत दिनों तक वे दोनों विभिन्न प्रकार की योनियों में पतित होकर संसार भ्रमण करने लगे।'
(श्लोक १२४-१२७) ___ 'कितना ही समय व्यतीत हो गया। तदुपरान्त वे राजगृह नगर में कपिल नामक ब्राह्मण की पत्नी सावित्री के गर्भ से युग्म रूप में उत्पन्न हुए। उनके नाम विनोद और रमण थे। रमण वेदाध्ययन के लिए विदेश गया। वहाँ वेदाध्ययन कर वह राजगृह लौट आया। जब वह राजगृह प्रवेश करने लगा तो रात बहुत हो गई थी। उसे असमय आया देखकर द्वारपालों ने द्वार नहीं खोला। अतः सर्व साधारण के व्यवहार के लिए जो यक्षायतन था वह वहाँ जाकर रात्रि व्यतीत करने के लिए अवस्थित हो गया।'
(श्लोक १२८-१३०) 'उसी समय विनोद की पत्नी शाखा दत्त नामक व्यक्ति के साथ व्यभिचार का संकेत पाकर वहाँ यक्षायतन में आई । दत्त तब तक आया नहीं था। उसने रमण को ही दत्त समझकर उसे जागृत किया और व्यभिचार में लिप्त हो गई। उसका अनुसरण कर उसका पति विनोद वहाँ आया और रमण को मार डाला। शाखा ने रमण की छुरी बाहर निकाल कर उसी से विनोद को मार डाला।'
(श्लोक १३१-१३२) 'वे दोनों पुनः दीर्घ काल तक भव-भ्रमण करते रहे । तत्पश्चात् विनोद ने एक धनाढ्य व्यक्ति के घर धन नामक पुत्र रूप में जन्म ग्रहण किया। रमण भी उसी श्रेष्ठी की पत्नी लक्ष्मी के गर्भ से भूषण नामक पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। भूषण के साथ बत्तीस श्रेष्ठी कन्याओं का विवाह हुआ। वह उनके साथ सुखोपभोग करने लगा। एक दिन रात्रि के चतुर्थ प्रहर में जब वह अपने घर की छत पर बैठा था उसी समय श्रीधर नामक मुनि को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। देवों ने केवल ज्ञान उत्सव मनाया। उसने उस महोत्सव को देखा। यह देखकर भूषण के मन में धर्म-भाव उत्पन्न हआ। वह उसी समय प्रासाद से उतर कर मुनि को वन्दना करने गया । जाते समय राह में सर्प ने उसे डस लिया शुभ परिमाण में मृत्यु होने के कारण वह दीर्घकाल तक शुभ गति में भ्रमण करता रहा। तत्पश्चात् वह जम्बूद्वीप के अपर विदेह के रत्नपुर नामक नगर में