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अब क्रन्दन बन्द करो और रावण का दाह-संस्कार करो।'
(श्लोक ३-८) तदुपरान्त महात्मा राम ने बन्दी कुम्भकर्ण, मेघवाहन आदि को मुक्त कर दिया।
(श्लोक ९) कुम्भकर्ण, विभीषण, इन्द्रजीत, मेघवाहन, मन्दोदरी आदि आत्मीय परिजनों ने रोते-रोते रावण के लिए गोशीर्ष चन्दन की चिता निर्मित की और कर्पूर, अगरु मिश्रित प्रज्वलित अग्नि द्वारा रावण का अग्नि-संस्कार किया।
(श्लोक १०-११) राम एवं अन्य लोगों ने पद्म सरोवर पर जाकर स्नान किया और रावण को जलाञ्जलि दी।
श्लोक १२) तब राम और लक्ष्मण ऐसे मधुर स्वर में मानो अमृत की वर्षा हो रही हो, कुम्भकर्णादि वीरों से बोले, 'हे वीरगण ! पूर्व की भाँति ही आप लोग राज्य करें। आपकी सम्पत्ति का हमें कोई लोभ नहीं है। हम तो आपका कल्याण चाहते हैं।' (श्लोक १३-१४)
राम और लक्ष्मण के ऐसे वचन सुनकर शोक और विस्मय से गद्गद् से कुम्भकर्णादि बोले-'हे महाबाहु, हे वीर, इस विशाल पार्थिव राज्य से अब हमें कोई सरोकार नहीं है। अब हम लोग मोक्षराज्यप्रदानकारी दीक्षा ग्रहण करेंगे। (श्लोक १५-१६)
उसी समय कुसुमायुध उद्यान में चार ज्ञान के धारी अप्रमेय कमल नामक मुनि आए हुए थे। जिस दिन रावण की मृत्यु हुई उसी रात्रि को वहीं उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ। देवों ने आकर केवलज्ञान महोत्सव मनाया। सुबह होते ही राम, लक्ष्मण, कुम्भकर्ण, इन्द्रजीत आदि मुनि को वन्दना करने गए। वन्दना के पश्चात् धर्मोपदेश सुना। देशना सुनकर इन्द्रजीत और मेघवाहन को वैराग्य उत्पन्न हो गया। देशना के अन्त में उन्होंने मुनि से अपना पूर्व भव जानना चाहा ।
(श्लोक १७-२०) मुनि बोले, 'इसी भरतक्षेत्र में कौशाम्बी नामक एक नगर है। वहाँ तुम दोनों भाइयों ने भाई रूप में एक गरीब के घर जन्म लिया। तुम्हारे नाम प्रथम और पश्चिम था। एक समय तुम दोनों ने भवदत्त मुनि से दीक्षा ग्रहण की और शान्तकषायी बनकर इधर-उधर विचरण करने लगे। कुछ समय पश्चात् तुम लोग पुनः कौशाम्बी आए और वहाँ वसन्तोत्सव में राजा नन्दीघोष को