________________
[201
तरह तब करुण क्रन्दन करने लगी। तब भी ध्यानस्थित रावण ध्यान से विचलित नहीं हुआ।
(श्लोक ३४४-३४८) उसी समय आकाश-मण्डल को प्रकाशित करती हुई बहुरूपिणी विद्या प्रकट हुई । बोली, 'रावण तुमने मुझे सिद्ध कर लिया है । बोलो, मैं तुम्हारा क्या काम कर सकती हूं? मैं समस्त संसार को तुम्हारे वश में कर सकती हूं। राम और लक्ष्मण हैं ही क्या ?'
(श्लोक ३४९-३५०) रावण बोला, 'हे विद्या ! सचमुच तुम्हारे लिए सब कुछ साध्य है; किन्तु इस समय मुझे तुम्हारी आवश्यकता नहीं है । अभी तुम जाओ। जब तुम्हें बुलाऊँ तब आना।' रावण का यह कथन सुन कर विद्या अन्तर्धान हो गई। समस्त वानर भी उड़कर अपने-अपने स्थान पर आ गए।
(श्लोक ३५१-३५२) रावण ने मन्दोदरी की दुर्दशा की बात सुनी। वह क्रुद्ध होकर दन्तघर्षण करने लगा। तदुपरान्त स्नानाहार कर देवरमण उद्यान में सीता के पास गया और बोला, 'हे सुन्दरी ! मैंने बहुत दिनों तक तुमसे अनुनय-विनय किया है; किन्तु तुम उपेक्षा करती रही। किन्तु, अब मैं नियम भंग के भय का भी परित्याग कर राम और लक्ष्मण को मारकर बलपूर्वक तुम्हारे साथ क्रीड़ा करूंगा।'
(श्लोक ३५३-३५५) रावण के विषमय वचनों को सुनकर रावण की आशा के साथ-साथ सीता मूच्छित होकर गिर पड़ी। कुछ क्षणों पश्चात् ही चेतना लौटने पर उसने नियम लिया-जिस समय राम और लक्ष्मण की मृत्यु का संवाद सुनूँगी उसी समय से अनशन ग्रहण कर लूगी ।
(श्लोक ३५६-३५७) सीता की प्रतिज्ञा की बात सुनकर रावण चमक उठा। सोचने लगा-राम के साथ इसका प्रेम स्वाभाविक है । अतः इससे अनुराग करने की इच्छा शुष्कभूमि पर कमल विकसित करने जैसी व्यर्थ है। विभीषण के कथन की उपेक्षा कर मैंने ठीक नहीं किया। हाय ! मैंने स्व-कुल को कलङ्कित किया है और न्याय-सम्मत परामर्श देने वाले मन्त्रियों का भी अपमान किया है। किन्तु अब मैं क्या करूँ ? अब यदि सीता को छोड़ देता हूं तो अपयश होगा। लोग कहेंगे कि राम के भय से रावण ने सीता को छोड़ दिया।