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________________ 200] 'हे प्रभो, आपके चरण-कमलों में नमस्कार करने से और आपके समक्ष नित्य भूलुण्ठित होने से मेरे ललाट में आपके चरणनखों की किरण पंक्ति शृङ्गार तिलक रूप हो । 'हे प्रभो, आपको निवेदित पुष्प गन्धादि पदार्थ मेरे राज्य सम्पत्ति रूप लता के फल को मानो प्राप्त हो गए। 'हे जगत्पति, आपसे मेरी बारम्बार यही प्रार्थना है भव-भव में मैं आपकी अत्यन्त भक्ति-पराभक्ति को प्राप्त करूं । (श्लोक ३३०-३३७) भगवान् की इस प्रकार स्तति कर हाथ में अक्षमाला लिए रत्नशिला पर बैठकर रावण ने विद्या-साधना प्रारम्भ कर दी। मन्दोदरी ने यमदण्ड नामक द्वारपाल को बुलाकर कहा, 'लंकापुरी में घोषणा कर दो कि लंकापुरी में आठ दिनों तक सब जैन-धर्म का पालन करें । जो नहीं करेगा उसे प्राण-दण्ड दिया जाएगा।' (श्लोक ३३८-३४०) आदेशानुसार द्वारपाल ने यही घोषणा करवा दी । गुप्तचरों ने जाकर यही सूचना सुग्रीव को दी। सुग्रीव ने जाकर राम से निवेदन किया, 'हे प्रभु ! रावण के बहुरूपिणी विद्या के सिद्ध हो जाने पर उसे पराजित करना असाध्य हो जाएगा।' (श्लोक ३४१-३४२) राम हँसकर बोले, 'शान्त होकर ध्यान करते हुए रावण पर मैं अस्त्राघात कैसे करू ? मैं उसके जैसा कपटी नहीं हूं।' (श्लोक ३४३) राम की बात सुनकर अङ्गदादि वीर लंकापति रावण की साधना नष्ट करने के लिए शान्तिनाथ जिनालय में गए। वे उद्धततापूर्वक रावण को नानाविध कष्ट देने लगे; किन्तु रावण जरा भी विचलित नहीं हुआ। अङ्गद ने मन्दोदरी के केश पकड़कर रावण से कहा, 'रावण, शरणहीन और भयभीत होकर तुम यह कैसा नाटक कर रहे हो? तुमने हमारे प्रभु की अनुपस्थिति में सती सीता का हरण कर लिया था; किन्तु हम तुम्हारे सामने तुम्हारी पत्नी का हरण कर लिए जा रहे हैं। फिर भी रावण कुछ नहीं बोला। तब अङ्गद क्रोध से प्रज्वलित होकर मन्दोदरी को खींचकर ले जाने लगा। वह अनाथा मन्दोदरी कुररी पक्षी की
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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