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से सौम्य और निरपेक्ष देवगण जो कि युद्ध देख रहे थे बोल उठे, 'अहो, वज्रोदर वीर हनुमान के साथ युद्ध करने में समर्थ और उनके योग्य हैं ।' मान के पर्वत रूप हनुमान ने इस देवोक्ति को सहन न करने के कारण क्रुद्ध होकर उत्पात मेघ की तरह विचित्र शस्त्र वृष्टि कर समस्त राक्षस वीरों के सामने बज्रोदर को मार डाला । ( श्लोक १०६ - ११० ) बोदर की मृत्यु से क्रुद्ध होकर रावण का पुत्र जम्बूमाली सम्मुख आया और महावत जैसे हाथी का आह्वान करता है उसी प्रकार तिरस्कारपूर्वक हनुमान को युद्ध के लिए आह्वान किया । एक-दूसरे का वध करने के लिए वे परस्पर साँप और सपेरे की तरह बाण-युद्ध करने लगे । वे एक-दूसरे पर आए हुए बाणों से द्विगुणित बाण बरसने लगे । उस समय उनकी स्थिति क्रमशः ऋणदाता और ऋण ग्रहण करने वाले जैसी हो गई । हनुमान कुपित होकर जम्बूमाली को रथ, अश्व और सारथी विहीन कर डाला । फिर उस पर मुद्गर से कठोर प्रहार किया । फलत: जम्बूमाली मूच्छित होकर गिर पड़ा। ( श्लोक १११-११४) जम्बूमाली को मूच्छित होते देखकर महोदर नामक राक्षस क्रोध से बाण वृष्टि करता हुआ युद्ध के लिए हनुमान के सन्मुख आया । अन्य राक्षसों ने भी हनुमान को मारने के लिए श्वान जैसे सूअर को घेर लेता है उसी भांति उन्हें चारों ओर से घेर लिया । हनुमान के तीव्र बाण शीघ्रतापूर्वक निर्गत होकर शत्रुओं को आहत करने लगे । कोई बाण हाथ में, कोई मुख में, कोई पैर में, कोई हृदय में, कोई उदर में प्रविष्ट हो गया । इस समय हनुमान राक्षसों की सेना में इस प्रकार सुशोभित हो रहे थे जैसे वन में दावानल एवं समुद्र में वडवानल । अल्प समय में ही हनुमान ने राक्षस सेना को इस प्रकार नष्ट कर डाला जैसे सूर्य अन्धकार को नष्ट कर देता है । (श्लोक ११५-११९) राक्षस सेना को इस प्रकार नष्ट होते देखकर कुम्भकर्ण क्रुद्ध होकर युद्ध के लिए आया । वह इस प्रकार सुशोभित हो रहा था मानो ईशानेन्द्र ही पृथ्वी पर उतर आया हो । पद प्रहार से, मुष्टि प्रहार से, कोहनी के प्रहार से थप्पड़ मारकर, मुद्गर आघात से, टङ्कर के आघात से इस प्रकार अनेक प्रकार से वे वानर
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