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________________ [185 सेना को नष्ट करने लगे । ( श्लोक १२०-१२२) कल्पान्त काल के समुद्र की भांति रावण के तपस्वी भाई कुम्भकर्ण को युद्ध में उपस्थित देखकर सुग्रीव, भामण्डल, दधिमुख, महेन्द्र, कुमुद, अङ्गद और अन्यान्य वीर वानर अग्नि की भांति क्रोध से प्रज्वलित होकर युद्धभूमि में उपस्थित हुए | उन श्रेष्ठ बन्दरगणों ने विचित्र प्रकार के शस्त्रों की वर्षा करते हुए शिकारी जिस प्रकार सिंह को घेर लेता है उसी प्रकार कुम्भकर्ण को घेर लिया । (श्लोक १२३-१२५) तब कुम्भकर्ण ने कालरात्रि-सा मुनि वाक्य की तरह अमोघ प्रस्वापन नामक अस्त इन पर निक्षेप किया । फलस्वरूप समस्त वानर सेना जिस प्रकार कुमुद दिन में सो जाता है उसी प्रकार निद्रा के वशीभूत हो गई । यह देखकर विभीषण ने तत्काल प्रबोधिनी नामक महाविद्या को स्मरण किया । उसके प्रभाव से समस्त वानर सेना जाग उठी और 'कुम्भकर्ण कहां है ? मारोमारो' आदि शब्द उच्चारित करने लगी । उनका कोलाहल वैसा ही लग रहा था जैसे पक्षीगण प्रभात होने पर करते हैं । ( श्लोक १२६ - १२८ ) सुग्रीव अधिष्ठित योद्धागग ने कानों तक खींच-खींच कर बाण बरसा कर कुम्भकर्ण को अस्त-व्यस्त कर दिया । सुग्रीव ने गदा के प्रहार से कुम्भकर्ण के सारथी और अश्वों की हत्या कर रथ को भग्न कर डाला । कुम्भकर्ण हाथ में गदा लेकर नीचे उतर आया। उसे देखकर ऐसा लग रहा था मानो शिखर युक्त पहाड़ खड़ा हो, कुम्भकर्ण सुग्रीव की ओर दौड़ा । (श्लोक १२९ - १३१) कुम्भकर्ण के गतिवेग से जो वायु प्रवाहित हुई उससे हाथी के स्पर्श से जैसे वृक्ष गिर जाता है उसी प्रकार कितने ही जमीन पर गिर पड़े । नदी जिस प्रकार पाषाण की बाधा हटाकर निर्बाध तेजी से बहती रहती है, उसी प्रकार बानरों की बाधा हटाकर कुम्भकर्ण दौड़ा और सुग्रीव के रथ को चूर्ण कर डाला । सुग्रीव ने आक्रोश में उड़कर वहीं से इन्द्र जिस प्रकार पर्वत पर वज्र निक्षेप करता है उसी प्रकार कुम्भकर्ण पर एक वृहद शिलाखण्ड फेंका । कुम्भकर्ण ने गदा के प्रहार से उस शिला को चूर-चूर कर दिया । शिला का चूर्ण कुम्भकर्ण के चारों ओर इस भांति उड़ने लगा जैसे
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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