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युद्ध आरम्भ हुआ । अल्प समय में ही युद्ध स्थल प्रवाहित रक्त के कारण कहीं नदी-सा, जमीन पर गिरे हुए हाथियों के कारण पर्वत-सा, रथ से टूट पड़ी मकरमुख ध्वजाओं से मकर के निवास स्थान-सा, अर्द्धभग्न बड़े-बड़े रथ से कहीं समुद्र से निकलते दांतोंसा, नृत्यरत कवन्धों से नृत्यभूमि-सा लग रहा था । ( श्लोक ९३-९५) रावण की हुंकार पर राक्षसगण प्रबल वेग से बन्दरों पर आक्रमण कर उन्हें पीछे लौटने को वाध्य करने लगे । अपनी सेना को पीछे हटते देखकर सुग्रीव क्रोधित हो गए । वे धनुष लेकर प्रबल सेना के पास पृथ्वी को कम्पित करते हुए आगे बढ़े । उनको जाते देख हनुमान उनको रोककर स्वयं युद्ध के लिए आगे आया । अगणित सैनिकों से रक्षित दुर्मद राक्षस- व्यूह अत्यन्त दुर्भेद्य था । फिर भी हनुमान ने जिस प्रकार मन्दराचल समुद्र में प्रवेश करता है उसी प्रकार उस व्यूह में प्रवेश किया । ( श्लोक ९६-९९ ) हनुमान को सेना के मध्य प्रवेश करते देखकर तीर-धनुष लेकर दुर्जय माली नामक राक्षस मेघ की तरह गर्जन करता हुआ उन पर आक्रमण करने लगा । दोनों में युद्ध प्रारम्भ हुआ । धनुष पर टङ्कार करते हुए दोनों वीर ऐसे लग रहे थे मानो दो सिंह अपनी पूँछ को जमीन पर पछाड़ रहे हों। एक-दूसरे पर वे प्रहार कर रहे थे । शस्त्र द्वारा अङ्ग छिन्न कर रहे थे और खूब गर्जना कर रहे थे । बहुत देर तक युद्ध करने के पश्चात् हनुमान ने माली को उसी प्रकार अस्त्रविहीन कर डाला जिस प्रकार ग्रीष्मकालीन सूर्य क्षुद्र सरोवर को शुष्क - जलविहीन कर देता है । तब हनुमान माली से बोले, 'हे वृद्ध राक्षस, तू यहां से चला जा । तुम्हें मारकर क्या लाभ होगा ?' ( श्लोक १०० - १०४ ) हनुमान का यह कथन सुनकर वज्रोदर राक्षस सम्मुख आया । बोला, 'रे पापी, दुर्वचनी, इधर आ । अब तेरी मृत्यु आ गई है । मुझसे युद्ध कर, मैं तुझे यमलोक पहुंचा दूँ ।
( श्लोक १०४ - १०५) बोदर की बात सुनकर हनुमान केशरी सिंह की तरह गरजे और बाणवृष्टि कर उसे आच्छादित कर डाला। उन बाणों को छिन्न कर मेघ जैसे सूर्य को आच्छादित कर देता है उसी प्रकार बज्रोदर ने अपने बाणों से हनुमान को आवृत कर दिया । आकाश