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की सजा देने के लिए ही तुझे सामान्य विडम्बना दी गई है।'
__ (श्लोक ३८९-३९३) हनुमान बोले, 'रावण, मैं कब तुम्हारा सेवक था और तुम मेरे स्वामी ? इस प्रकार बोलने में तुम्हें लज्जा नहीं आती? बहुत दिनों पहले की बात है, तुम्हारा सामन्त खर स्वयं को खूब बलवान् समझता था। उसे मेरे पिता ने वरुण के कारागार से मुक्त करवाया। तदुपरान्त तुमने मुझे अपनी रक्षा के लिए पुकारा था और मैंने भी वरुणपूत्रों के हाथों से तुम्हारी रक्षा की थी; किन्तु अब तुम पाप-कार्य में रत हो गए हो। अतः रक्षा के योग्य नहीं हो। इतना ही नहीं, पर-स्त्री का हरण करने वाले तुम जैसे से तो बात करना ही पाप है। हे रावण, अकेले लक्ष्मण के हाथों से ही तुम्हारी रक्षा कर सके ऐसा कोई भी व्यक्ति तुम्हारे परिचय में नहीं है फिर उनके अग्रज राम के हाथों से बच सकते हो ऐसा हो ही नहीं सकता।'
(श्लोक ३९४-३९८) हनुमान की बातों को सुनकर रावण अत्यन्त क्रोधित हो उठा। वक्र-भृकुटि के कारण वह बड़ा भयङ्कर लगने लगा। वह होठ दबाकर बोला, 'ओ बन्दर ! एक तो तूने शत्रु का पक्ष लिया है। फिर मेरे सम्मुख खड़े होकर ऐसे कटुक और उद्धत शब्द बोल रहा है ? अतः ऐसी इच्छा हो रही है कि तुझे मार डाल; किन्तु तुझे जीवन से इतना वैराग्य क्यों है ? कुष्ठ रोग से जिसकी देह विदीर्ण हो गई है, ऐसा व्यक्ति भी यदि मरना चाहे भी हत्या के भय से कोई उसे नहीं मारेगा। इस प्रकार दूत को जो अनन्य है, मार कर हत्या का दोष कौन लेगा ? किन्तु, हे अधम ! तेरा माथा मुडवाकर गधे पर चढ़ाकर समस्त नगर में, लङ्का की सभी गलियों में तिरस्कृत करते हुए अवश्य ही घुमाऊँगा।'
(श्लोक ३९९-४०२) रावण की बात सुनकर हनुमान ने उसी समय नागपाश को काट डाला क्योंकि कमलनाल से हाथी को कितनी देर तक बाँध कर रखा जा सकता है ? तदुपरान्त हनुमान ने विद्युतु दण्ड की भाँति उछलकर रावण के मुकुट को जमीन पर पटक दिया और पादाघात से उसे चूर्ण कर डाला। क्रुद्ध रावण चिल्लाने लगामारो, पकड़ो इस नीच को, इसे जाने मत दो।' किन्तु, कोई भी