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चले गए ।
उन्हें पकड़ नहीं पाया । वे पादाघात से समस्त लङ्का को कँपाते हुए ( श्लोक ४०४-४०५ ) इस प्रकार गरुड़ की भाँति क्रीड़ा करते हुए हनुमान आकाशपथ से राम के निकट पहुंच गए। राम को नमस्कार कर सीता का चूड़ामणि उनके सम्मुख रखा राम ने तत्क्षण उसे उठाया और सीता की तरह उसे बार-बार हृदय से लगाने लगे ।
( श्लोक ४०६ -४०७ )
तदुपरान्त राम ने पुत्र-स्नेह से हनुमान को छाती से लगा लिया और वहाँ की खबरें पूछने लगे। जिनके भुजबल की कथा सुनने को अन्य सभी उत्सुक थे, ऐसे हनुमान ने लङ्का में घटे समस्त वृत्तान्त, निजकृत रावण का अपमान और सीता की यथार्थ स्थिति सुनाई । ( श्लोक ४०८ )
षष्ठ सर्ग समाप्त
सप्तम सर्ग
सीता का पूर्ण संवाद प्राप्त कर राम-लक्ष्मण ने आकाश पथ से सुग्रीव सहित लङ्का के लिए प्रयाण किया । भामण्डल, नल, नील, महेन्द्र, हनुमान, विराध, सुषेण, जाम्बवान्, अङ्गद और अन्य अनेक विद्याधर राजा अपनी सेना से दिक् समूह को आवृत करते हुए राम के साथ चले । विद्याधरगण अनेक प्रकार के रणवाद्य बजाने लगे | उसके गम्भीर नाद से आकाशमण्डल गूँज उठा । अपने स्वामी का कार्य सिद्ध करने के लिए गर्वित खेचरगण ने विमान में, रथ में, अश्व पर हस्ती पर एवं अन्य वाहनों पर बैठबैठ कर आकाश - पथ से गमन किया । ( श्लोक १-५) समुद्र के ऊपर से जाते हुए वे लोग अल्प समय में ही वेलंधरपुर नगर के निकट पहुंचे । यह नगर वेलंधर पर्वत के ऊपर ही अवस्थित था । इस नगर में समुद्र से दुर्द्धर समुद्र और सेतु नामक दो राजा थे । उन्हें उद्धत देखकर राम की जो सेना अग्रवर्ती थी उनके साथ युद्ध करने लगी । स्व स्वामी के कार्य में चतुर नल और नील ने समुद्र एवं सेतु को पकड़ कर राम के सन्मुख उपस्थित किया । दयालु राम ने उनका राज्य उन्हें लौटा दिया । महान्