SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गए । (श्लोक ३६५) तदुपरान्त वन्य हस्ती की भाँति अपने भुजबल से हनुमान ने देवरमण उद्यान को नष्ट करना प्रारम्भ कर दिया । रक्त अशोक वृक्षों में निःशोक, वकुल वृक्षों में अनाकुल, आम्र वृक्षों में निष्करुण, चम्पक वृक्षों में निष्कम्प, मन्दार वृक्षों में अतिरोषी, कदली वृक्षों में निर्दय और अन्य रमणीय वृक्षों में क्रूर हनुमान उन्हें नष्ट करने लगे। यह देखकर उद्यान के चारों ओर के द्वारपाल राक्षस हाथों में मुद्गर लिए उनकी ओर दौड़े और निकट आकर उन पर प्रहार करने लगे । तट स्थित पर्वत पर समुद्र तरङ्गों का आघात जिस प्रकार निष्फल होता है उसी प्रकार हनुमान पर उनके अस्त्र-शस्त्र निष्फल हो गए । हनुमान ने क्रुद्ध होकर एक वृक्ष को उखाड़ा और उसी से राक्षसों को मारना आरम्भ कर दिया । जो बलवान् होते हैं उनके लिए सभी कुछ अस्त्र होते हैं । पवन तुल्य अस्खलित हनुमान वृक्षों की तरह उद्यान के रक्षक राक्षसों को भी विनष्ट करने लगे। कुछ राक्षस रावण के पास गए और उसे हनुमान का आगमन, उद्यान और उद्यान-रक्षक राक्षसों को विनष्ट करने की घटना निवेदित की । (श्लोक ३६६-३७३) 173 यह सुनकर रावण ने हनुमान को मारने के लिए शत्रुघातक अक्षयकुमार को आदेश दिया। युद्ध में उत्साही अक्षयकुमार उद्यान में गया और हनुमान को गाली-गलौज देने लगा । हनुमान ने कहा, 'भोजन पूर्व के फल की तरह युद्ध के पूर्व ही तुम मुझे प्राप्त हो ।' ( श्लोक ३७४- ३७५) 'अरे, ओ कपि! क्यों वृथा गाल बजा रहा है ?' इस भाँति तिरस्कार कर रावणपुत्र अक्षयकुमार नेत्रवेग रोधकारी तीक्ष्ण शर हनुमान पर बरसाने लगे । हनुमान ने भी बाण-वर्षा कर अक्षयकुमार को इस प्रकार आच्छादित कर दिया जिस प्रकार उद्वेलित समुद्र का जल द्वीप को आच्छादित कर देता है। हनुमान बहुत समय तक अक्षयकुमार से युद्ध करते रहे । तदुपरान्त शीघ्र युद्ध बन्द कर देने की इच्छा से हनुमान ने पशु की तरह अक्षयकुमार की हत्या कर डाली । ( श्लोक ३७६-३७८ ) अपने भाई का निधन सुनकर इन्द्रजीत में आया और 'हे मारुति, खड़ा रह, खड़ा रह' क्रुद्ध होकर युद्धक्षेत्र कहते हुए उस पर
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy