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________________ 172] आपका चूड़ामणि मांगा है।' (श्लोक ३४६-३५३) ___ इस प्रकार राम का वृत्तान्त सुनकर सीता आनन्दित हो हो गई। इक्कीस दिन तक उन्होंने आहार ग्रहण नहीं किया था। उस दिन हृदय में सन्तोष हो जाने से और हनुमान के आग्रह पर उन्होंने आहार ग्रहण किया। फिर वे बोलीं, 'हे वत्स मेरे चिह्न स्वरूप यह चूड़ामणि तुम लो और यहाँ से शीघ्र चले जाओ । यहाँ अधिक समय तक रहने पर तुम्हें कष्ट उठाना पड़ेगा। क्रूर राक्षस को यदि तुम्हारे आने की खबर मिल गई तो वे तुम्हें मारने के लिए अवश्य ही यहाँ आ जाएंगे।' (श्लोक ३५४.३५६) ___ सीता का यह कथन सुनकर हनुमान मुस्कुराए और हाथ जोड़कर बोले, 'माँ ! मेरे प्रति वात्सल्य भाव होने के कारण भीत होकर आप ऐसा कह रही हैं। मैं त्रिलोकविजयी राम का दूत हूं। मेरे लिए बेचारा रावण और उसकी सेना क्या है ? अर्थात् तुच्छ है। हे स्वामिनी ! आज्ञा दें तो रावण को सेना सहित मारकर आपको कन्धे पर बैठाकर राम के पास ले जा सकता हूं।' (श्लोक ३५७-३५९) सीता हँसकर बोली, 'हे भद्र ! तुम्हारी बात पर विश्वास हो रहा है कि तुम अपने प्रभु राम को लज्जित नहीं करोगे । तुम राम और लक्ष्मण के दूत हो इसलिए तुम में सब प्रकार की शक्ति का होना सम्भव है; किन्तु मैं पर-पूरुष का लेशमात्र भी स्पर्श नहीं चाहती। अतः तुम राम के पास जाओ। यहाँ तुम्हें जो कुछ करना था वह कर लिया। अब तुम्हारे वहाँ जाने पर जो कुछ करना उचित होगा राम करेंगे।' (श्लोक ३६०-३६२) हनुमान बोले, 'माँ ! अब मैं राम के पास जा रहा हूं; किन्तु इन राक्षसों को अपना सामान्य-सा पराक्रम दिखाकर जाऊँगा। रावण स्वयं को सर्वविजयी समझता है। वह अन्य के बल को स्वीकार करना नहीं चाहता। अतः मैं उसे दिखला देना चाहता हूं कि राम तो क्या उनका दूत भी कितना पराक्रमी है।' (श्लोक ३६३-३६४) पराक्रम की बात सुनकर 'तब ठीक है' कहकर सीता ने उन्हें अपनी चूड़ामणि दिया। चूडामणि लेकर उन्हें प्रणाम कर अपने पराक्रम से पृथ्वी को कम्पित करते-करते हनुमान वहाँ से चले
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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