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________________ 170] देवरमण उद्यान में गए। वहां उन्होंने अशोक वृक्ष के नीचे सीता को बैठे हुए देखा। देखा, उनके रूक्षकेश उड़-उड़ कर ललाट पर गिर रहे हैं। सतत प्रवाहित नेत्रों के जल से वहां सरिता की सृष्टि हो रही है। हिमपीड़ित कमलिनी की भांति उनका मुखपंकज म्लान है और द्वितीया की चन्द्रकला की तरह देह क्षीण हो गई है। ऊष्ण निःश्वास-पात से उनके अधर-पल्लव परिशुष्क हो गए हैं। स्थिर योगिनी की तरह वे राम के ध्यान में लीन हैं। उनका वस्त्र मलिन हो गया है -स्व-शरीर पर भी उनकी स्पृहा नहीं है। (श्लोक ३२४-३२७) उन्हें देखकर हनुमान सोचने लगे, 'ओह ये ही सीता है ! ये तो वास्तव में शीलवती हैं। इनको तो देखकर ही मनुष्य पवित्र हो जाता है। सीता का विरह राम को पीड़ित कर रहा है यह तो उचित ही है । कारण, ऐसी रूपवती सुशीला और शुद्ध पत्नी भाग्यशाली को ही प्राप्त होती है। बेचारा रावण राम के ताप और अपने अतुल पाप से शीघ्र ही नष्ट हो जाएगा।' तदुपरान्त हनुमान ने अदृश्य होकर अपने साथ में लाई राम की अंगठी को सीता की गोद में डाल दिया। उस अंगूठी को देखकर सीता प्रसन्न हई। उसे प्रसन्न देखकर त्रिजटा रावण के पास जाकर बोली, 'इतने दिनों तक तो सीता दुःखी थी; किन्तु आज वह प्रसन्न हो गई है।' यह सुनकर रावण ने मन्दोदरी से कहा, 'लगता है अब सीता राम को भूल गई है और उसकी इच्छा मेरे साथ रहने की हो गई । अतः तुम जाकर उसे पुनः समझाओ।' अतः मन्दोदरी पति का दौत्य स्वीकार कर सीता को लब्ध करने के लिए उसके निकट गई और विनीत भाव से बोली, 'रावण अतुल वैभवशाली और अद्वितीय सुन्दर है। तुम भी रूप और लावण्य में उसके योग्य ही हो । यद्यपि विधाता ने योग्य पुरुष के साथ तुम्हारा सम्बन्ध स्थापित नहीं किया; किन्तु अब योग्य सम्बन्ध होना वांछनीय है। हे जानकी, जो रावण सेवा करने योग्य है वही रावण तुम्हारी सेवा करना चाह रहा है। तब तुम उसे क्यों नहीं चाहती? हे शुभ्र, तुम यदि रावण को चाहोगी तो मैं और अन्य सभी महिषियां तुम्हारी आज्ञा का पालन करेंगी।' (श्लोक ३२८-३३८) यह सुनकर सीता बोली, 'पति की दौत्यकारिणी दुर्मुखी !
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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