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________________ 162] सीता का वृत्तान्त सुनकर राम आनन्दित हुए और सुरसंगीतपुर के नरेश रत्नजटी को आलिंगन में ले लिया। फिर राम बार-बार उससे सीता के विषय में पूछने लगे और वह भी राम को प्रसन्न करने के लिए बार-बार सीता की बात बताने लगा । तब राम ने सुग्रीवादि योद्धाओं से पूछा, 'यहाँ से कितनी दूर है ?' उन्होंने उत्तर दिया, 'वह पुरी उससे क्या फर्क पड़ता है ? उस विश्वविजयी तो हम तृण तुल्य हैं ।' दूर राम बोले, 'मैं युद्ध में विजय प्राप्त इस बात को लेकर तुम लोग अभी से क्यों इच्छित वस्तु दिखाने की तरह मुझे उसे लक्ष्मण के धनुष से निकले तीर जब उसकी करेंगी तब समझ लोगे वह कितना वीर और राक्षसपुरी लङ्का हो या निकट, रावण के सम्मुख (श्लोक २०४ - २०७) कर सकूंगा या नहीं, चिन्तित हो ? तुम लोग दिखा दो । तदुपरान्त कण्ठ नाली से रक्त-पान सामर्थ्यवान् है ।' ( श्लोक २०८ - २०९) लक्ष्मण बोले, 'वह रावण वीर है, जिसने छल का आश्रय लेकर ऐसा कार्य किया है ? संग्राम रूपी नाटक के दर्शक के रूप तुम लोग देखोगे कि उस कपटाचारी का शिरच्छेद क्षत्रियोचित रूप मैं मैं किस प्रकार करता हूं ?" ( श्लोक २१०-२११) जामवन्त बोले, 'आर्य ! आप में वह सामर्थ्य है यह तो ठीक है; किन्तु अनलवीर्य नामक एक साधु ने कहा था कि जो व्यक्ति कोटशिला को उठाएगा वही रावण का वध करेगा । अतः हम लोगों के विश्वास के लिए आप उस शिला को उठाएँ ।' 'मैं प्रस्तुत हूँ' कहते हुए लक्ष्मण उठ खड़े हुए। तदुपरान्त वे विमान के द्वारा लक्ष्मण को वहाँ ले गए जहाँ कोटिशिला थी । लक्ष्मण ने तुरन्त उस शिला को अपने हाथों से उठा लिया । यह देखकर देव 'साधुसाधु' कहकर उन्हें सम्बोधित करते हुए पुष्पवृष्टि करने लगे । अत्र सबको विश्वास हो गया । वे पूर्व की भांति ही लक्ष्मण को विमान में बैठाकर राम के पास किष्किन्धा में लौट आए । ( श्लोक २१२ - २१६) तब वृद्ध कपिगण बोले, 'आपके द्वारा रावण का वध अवश्य होगा; किन्तु नीतिवान् पुरुषों का प्रथम कर्त्तव्य है दूत भेजना । यदि सन्देश वाहक दूत द्वारा ही कार्य सम्पन्न हो जाता है तो
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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