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लगा।
तब लज्जा से सिर नीचा किए उसने अपने पति को दोहद की बात बतायी । तब सहस्रार विद्या-बल से इन्द्र का रूप धारण कर उसके सम्मुख उपस्थित हुए और उसका दोहद पूर्ण किया। चित्रसुन्दरी ने भी उन्हें इन्द्र जानकर ही उनके साथ सम्भोग किया । यथासमय उनके एक पूर्ण पराक्रमी पुत्र ने जन्म ग्रहण किया। माँ की इन्द्र के साथ सम्भोग करने की इच्छा होने के कारण उसका नाम रखा गया इन्द्र । इन्द्र जब बड़ा होकर विद्या और बाहुबल से बलवान हो गया तब सहस्रार उसे राज्य देकर धर्माराधना में समय व्यतीत करने
(श्लोक ९७-१०३) इन्द्र ने समस्त विद्याधर राजाओं को जीत लिया। इन्द्र का दोहद उत्पन्न होने के कारण वह स्वयं को इन्द्र ही समझने लगा। उसने इन्द्र की तरह ही चार दिकपाल, सात सैन्यदल और सेनापति, तीन परिषद, बज्र आयुध, ऐरावत हस्ती, रम्भादि वारांगनाएँ, बहस्पति नामक मन्त्री, नैगमेषी नामक पैदल सेना के नायक पद की सृष्टि की। इस प्रकार इन्द्र की समस्त नम्पत्ति का नाम धारण कर वह स्वयं को इन्द्र होने का दावा कर समस्त विद्याधरों पर एकछत्र राज्य करने लगा। ज्योति:पुर के राजा मयूरध्वज की पत्नी आदित्यकीर्ति से उत्पन्न सोम को उसने पूर्व दिशा का दिकपाल बनाया। किष्किन्ध्यापुर के राजा कालाग्नि की स्त्री श्रीप्रभा के पुत्र यम को उसने दक्षिण दिशा का दिक्पाल बनाया। मेघपुर के राजा मेघरथ की पत्नी वरुणा के पुत्र वरुण को उसने पश्चिम दिशा का दिकपाल बनाया और कांचनपुर के राजा सुर की पत्नी कनकावती के पुत्र कुवेर को उत्तर दिशा दिकपाल बनाया। इस प्रकार इन्द्र के समस्त वैभव सहित इन्द्र राज्य करने लगा।
(श्लोक १०४-१११) मदमत्त हाथी जैसे अन्य हाथी को सहन नहीं कर सकता उसी प्रकार माली को इन्द्र का स्वयं को इन्द्र समझकर गर्व करना सहन नहीं हआ। अत: वह अपने पराक्रमी भाई, मन्त्री और मित्रों को साथ लेकर इन्द्र से युद्ध करने आया । पराक्रमी पुरुषों के हृदय में युद्ध के अतिरिक्त अन्य कोई विचार ही नहीं आता। अन्य राक्षस वीर भी वानर वीरों को लेकर सिंह, हाथी, घोड़ा, महिष, वराह और वृषभादि वाहन पर बैठकर युद्ध में अग्रसर हुए। रवाना