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होने के समय गर्दभ, सियार, सारस आदि उनके दाहिनी ओर खड़े होकर चीत्कार करने लगे जबकि वे वाममार्गी थे । इस अपशकुन को देखकर बुद्धिमान सुमाली ने माली को युद्ध यात्रा से निवृत्त करना चाहा; किन्तु भुजबल के गर्व से गर्वित माली उसकी बात पर कान न देकर दलबल सहित वैताढ्य पर्वत पर जाकर इन्द्र का युद्ध के लिए आह्वान किया । इन्द्र हाथ में बज्र लेकर नैगमेषी आदि सेनापति, सोमादि दिक्पाल और विविध शस्त्रधारी सेना से परिवृत होकर ऐरावत पर आरूढ़ युद्ध क्षेत्र में उपस्थित हुआ । विद्युद् रूप अस्त्र लेकर आकाश में जैसे मेघ संघर्ष करता है उसी प्रकार इन्द्र और राक्षसों की सेना में परस्पर संघर्ष प्रारम्भ हुआ । अर्थात् एक ने दूसरे पर आक्रमण किया । कहीं पर्वत शिखर की भाँति रथ टूटकर गिरने लगा, कहीं हवा द्वारा उड़ा कर ले जाए गए मेघ की तरह हस्तीयूथ छिन्न-भिन्न होने लगे । कहीं राहुमुण्ड की तरह सैनिकों के कटे मुण्ड गिरने लगे । कहीं अश्वों के एक पैर फट जाने के कारण वे इस प्रकार चलने लगे मानो रज्जुबद्ध किए हुए हैं । इस भाँति इन्द्र की सेना ने माली की सेना को अस्त व्यस्त कर डाला । सिंह द्वारा पकड़ा गया हाथी बलवान होने पर भी क्या कर सकता है ? ( श्लोक १११-१२३ )
तब राक्षसपति माली सुमाली आदि ने अन्य वीरों को लेकर यूथ सह यूथपति हस्ती की तरह इन्द्र की सेना पर आक्रमण किया । उसके पराक्रमी वीरगण मेघ जैसे शिलावृष्टि का उपद्रव करता है उसी प्रकार गदा - मुद्गर और तीक्ष्ण तीरों से इन्द्र की सेना को व्याकुल कर डाला । अपनी सेना को त्रस्त होते देखकर इन्द्र ऐरावत पर चढ़कर स्वलोकपाल और सेनापतियों को लेकर युद्ध क्षेत्र में अग्रसर होने लगा । इन्द्र माली के साथ एवं लोकपालादि सुमाली और अन्य वीरों के साथ युद्ध करने लगे । मृत्यु को हाथ में लिए इस प्रकार उभय पक्ष बहुत देर तक युद्ध करता रहा । जो जय के अभिलाषी होते हैं वे प्रायः मृत्यु को हाथ में लेकर ही युद्ध करते हैं । युद्ध में किसी भी प्रकार छलना का आश्रय लिए बिना युद्ध करते हुए इन्द्र मेघ जैसे विद्युत के द्वारा गोधिका को मार डालता है उसी प्रकार बज्र से गर्वित माली को मार डाला | माली की मृत्यु से राक्षस और वानरों के भयभीत होने के कारण सुमाली