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________________ [147 करो। जब मैं तुम्हारा दास बनूगा तो समस्त खेचर और भूचर तुम्हारे दास बन जाएँगे।' (श्लोक ४५०-४५३) जब रावण इस प्रकार कह रहा था तब सीता मन्त्राक्षरों की भाँति 'राम' शब्द का जप माथा नीचे किए कर रही थी। सीता को प्रत्युत्तर न देते हुए देखकर कामातुर रावण ने उसके पैरों पर अपना सिर रख दिया। पर-पुरुष के स्पर्श से कातर सीता ने तत्क्षण अपने पैर सरका लिए और क्रुद्ध होकर उससे बोली, 'भो निर्दय निर्लज्ज, अल्प समय में ही पर-स्त्री-कामना का फल मृत्यु तू प्राप्त करेगा।' (श्लोक ४५४-४५६) उसी समय सारण आदि मन्त्री और अन्य समस्त राक्षसगण रावण के सम्मुख आए। महाउत्साही और महासाहसिक कार्य के कर्ता अत्यन्त बलवान् रावण ने उत्साहपूर्वक लङ्का नगरी में प्रवेश किया। (श्लोक ४५७-४५८) उस समय सीता ने यह नियम लिया- जब तक राम-लक्ष्मण संवाद नहीं मिलेगा, वह आहार-पानी ग्रहण नहीं करेगी। (श्लोक ४५९) तदुपरान्त तेजनिधि रावण सीता को लङ्का की पूर्व दिशा में अवस्थित देवों के क्रीड़ास्थल नन्दन वन-से और खेचरी रमणियों का विलासधाम देवरमन नामक उद्यान में रक्तवर्ण अशोक वृक्ष के नीचे त्रिजटा आदि राक्षसियों की देख-रेख में रखकर हर्षित मन से स्व-प्रासाद चला गया। (श्लोक ४६०) पंचम सर्ग समाप्त षष्ठ सर्ग लक्ष्मण के जैसा सिंहनाद सुनकर राम धनुष लेकर शीघ्र वहाँ पहुंचे जहाँ लक्ष्मण शत्रुओं के साथ युद्ध कर रहे थे। राम को देखकर लक्ष्मण ने पूछा, 'हे आर्य ! सीता को अकेला छोड़कर आप यहाँ क्यों आ गए ?' राम ने कहा, 'तुमने विपदसूचक सिंहनाद किया था इसलिए मैं यहाँ आया हूं।' लक्ष्मण ने कहा, 'मैंने तो सिंहनाद नहीं किया था; किन्तु जब आपने सुना है इससे लगता है कि कोई हमारी प्रतारणा कर रहा है। आर्या सीता को हरण करने के लिए किसी ने यह कुमन्त्रणा कर आपको वहाँ से हटा
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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