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दिया है। सिंहनाद करने का अन्य तो कोई कारण समझ में नहीं जा रहा है। अतः हे आर्य ! आप शीघ्र सीता की रक्षा के लिए जाएँ।'
(श्लोक १-६) लक्ष्मण की बात सुनकर राम शीघ्रतापूर्वक अपने स्व-स्थान को लोट गए; किन्तु वहाँ सीता को न देखकर मूच्छित होकर गिर पड़े। कुछ देर पश्चात् चेतना लौटने पर जब उन्होंने चारों ओर देखा तो उन्हें मरणासन्न जटायु दिखाई पड़ा। उसे देखकर राम सोचने लगे, कोई मायावी छलकर मेरी सीता का हरण कर ले गया है। यह महात्मा पक्षी हरणकर्ता के सम्मुखीन हुआ है। इसलिए उसी ने इसके डैनों को काट डाला है। उस पर प्रत्युपकार करने की भावना से राम ने अन्त समय उसे परलोक-यात्रा के पाथेय रूप में नमस्कार महामन्त्र सुनाया। तत्काल ही वह मृत्यु को प्राप्त कर महेन्द्र कल्प में देव रूप में उत्पन्न हुआ। राम सीता के सन्धान में इधर-उधर उस वन में घूमने लगे। (श्लोक ७-११)
___ उधर लक्ष्मण खर की वृहद सैन्यवाहिनी के साथ अकेले ही युद्ध कर रहे थे। युद्ध में सिंह का सहयोगी कोई नहीं होता । खर का अनुज त्रिशिरा अपने ज्येष्ठ भ्राता से बोला, 'ऐसे तुच्छ व्यक्ति के साथ आप क्यों युद्ध कर रहे हैं ?' ऐसा कहकर उसे युद्ध से निवत्त कर स्वयं लक्ष्मण से युद्ध करने लगा। रामानुज लक्ष्मण ने रथ में बैठकर युद्ध करने को उद्यत त्रिशिरा को पतंग की तरह मार डाला।
(श्लोक १२-१४) उसी समय पाताललङ्काधिपति चन्द्रोदर का पुत्र विराध अपनी समस्त सेना लेकर वहाँ पहुंचा। राम के शत्रु का नाश और उनका आराधक होने की इच्छा से विराध ने लक्ष्मण को नमस्कार कर कहा, 'मैं आपके शत्र का द्वेषी और वैरी हैं और आपका सेवक । रावण के इन सेवकों ने मेरे पराक्रमी पिता चन्द्रोदर को निर्वासित कर पाताल लङ्का पर स्वयं का अधिकार कर लिया है। हे देव ! अन्धकार को विनष्ट करने में यद्यपि सूर्य का कोई सहायक नहीं होता फिर भी शत्रु का विनाश करने में आपका यह सेवक सामान्य सहायता करने हेतु प्रस्तुत है । अतः मुछे युद्ध करने का आदेश दें।'
(श्लोक १५-१८) लक्ष्मण ने हँसकर उत्तर दिया, 'मैं अभी इन शत्रुओं का