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है उसी प्रकार उग्र तेजधारी राम के निकट से सीता का हरण करना दुष्कर है। अतः उसने अवलोकिनी विद्या का स्मरण किया। विद्या तत्काल दासी की तरह करबद्ध बनी, उसके सम्मख उपस्थित हई। रावण उससे बोला, 'सीताहरण में तुम मेरी सहायक बनो।' विद्या ने जवाब दिया, 'वासुकि नाग के मस्तक से मणि लाना सरल है; किन्तु राम के पास से सीता को ले जाना देवों के लिए भी कठिन है। फिर भी इसका एक उपाय है। युद्ध में जाने के समय राम ने लक्ष्मण से कहा था कि यदि मेरी आवश्यकता आ पड़े तो तुम सिंहनाद करना। इसी संकेतानुसार सिंहनाद करने से यदि राम लक्ष्मण के पास चले जाएँ तो सीता-हरण सहज हो सकता है।' रावण ने वैसा ही करने का आदेश दिया। तब विद्या ने कुछ दूर जाकर ठीक लक्ष्मण को ही भाँति सिंहनाद किया।
(श्लोक ४२४-४३१) सिंहनाद सुनकर राम सोचने लगे, यद्यपि हस्तीमल्ल-से मेरे अनुज के लिए कोई प्रतिमल्ल नहीं है, जो लक्ष्मण को सङ्कट में डाल सके। पृथ्वी पर ऐसा कोई पुरुष नहीं है, फिर भी उसका सिंहनाद संकेतानुसार क्यों सुना जा रहा है ?
(श्लोक ४३२-४३४) __ इस प्रकार सोच-विचार करते हुए महामनस्वी राम जब व्याकुल हो उठे, उसी समय लक्ष्मण के प्रति सीता का जो वात्सल्य भाव था उसी वात्सल्य भाव को व्यक्त करती हुई सीता बोली'हे आर्यपुत्र ! वत्स लक्ष्मण निश्चय ही किसी विपद् में पड़ गए हैं। फिर भी आप उनके पास जाने में देर क्यों कर रहे हैं ? शीघ्र जाकर उनकी रक्षा कीजिए।'
(श्लोक ४३५-४३६) सीता का यह कथन और सिंहनाद से प्रेरित होकर राम अशुभ शकुनों की भी अवहेलना कर शीघ्र लक्ष्मण के पास चले गए।
(श्लोक ४३७) अवसर पाकर रावण उसी महर्त में विमान से नीचे उतरा। उसने रोती हुई जानकी को पकड़कर विमान में बैठा लिया । जानकी का क्रन्दन सुनकर 'हे स्वामिनी ! कोई भय नहीं है, मैं आ गया।' 'ओ निशाचर ! ठहर-ठहर' कहते हुए क्रुद्ध बने जटायु पक्षी ने रावण पर आक्रमण कर दिया और अपने तीक्ष्ण नाखूनों द्वारा कृषक जैसे हल द्वारा पृथ्वी को विदीर्ण करता है उसी प्रकार उसके