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राम ने पूछा, 'भद्र े, कृतान्त के आवास तुल्य इस भीषण दण्डकारण्य तुम अकेली कैसे आई ?' उसने प्रत्युत्तर में कहा, 'मैं अवन्ती राजा की कन्या हूं । रात्रि के समय जब प्रासाद में सो रही थी, कोई खेचर मुझे वहाँ से उठाकर यहाँ ले आया । इस बीच अन्य कोई विद्याधर कुमार मुझे देखकर हाथ में खड्ग लेकर उससे बोला, 'ओ दुराचारी, रत्नहार को जिस प्रकार बाज पक्षी ले जाता है उसी भांति इस स्त्री- रत्न को हरण कर तू कहां ले जा रहा है ? मैं यहाँ तेरा काल बनकर आया हूं।' यह सुनकर मेरा अपहण कर्त्ता खेचर मुझे छोड़कर उसके साथ युद्ध करने लगा । बहुत देर तक उनमें खड्ग युद्ध होता रहा । अन्त में मदमस्त हस्तियों की तरह दोनों की ही मृत्यु हो गई। तभी से 'मैं अब कहाँ जाऊँ' सोचती हुई इधर-उधर घूम रही थी कि मरुभूमि में छायादार वृक्ष की तरह पुण्ययोग से आपको देखा । हे स्वामी, मैं एक कुलीन कुमारी हूं अत: आप मेरा पाणिग्रहण करें । महापुरुषों से की गई याचना कभी व्यर्थ नहीं जाती ।' ( श्लोक ३९९-४०६) उसकी बात सुनकर परम बुद्धि सम्पन्न राम और लक्ष्मण एक-दूसरे को देखते हुए सोचने लगे, यह अवश्य ही कोई मायाविनी नट की तरह वेश धारण किए कुछ नाट्य का अभिनय कर हम लोगों को छलने के लिए आई है । राम हास्य ज्योत्स्ना से ओष्ठों को विकसित करते हुए उससे बोले, 'मैं तो यहाँ पत्नी सहित अवस्थित हूं अत: तुम पत्नीविहीन लक्ष्मण के पास जाओ ।' तब चन्द्रनखा ने लक्ष्मण से विवाह करने की प्रार्थना की । लक्ष्मण बोले, 'तुम पहले मेरे पूज्य अग्रज के पास गई थी । इसलिए तुम भी मेरे लिए पूज्या बन गई हो । अतः इस विषय में तुम मुझे अधिक मत कहो ।' (श्लोक ४०७-४१० )
इस प्रकार अपनी प्रार्थना अस्वीकृत होने एवं पुत्रवध के कारण वह अत्यन्त कुपित हो उठी । वह तत्काल पाताल लङ्का गई और अपने स्वामी खर और अन्यान्य विद्याधरों को पुत्र का निधन वृत्तान्त बता दिया । खर तत्काल चौदह हजार विद्याधरों की सेना लेकर राम को पीड़ित करने के लिए उस प्रकार दण्डकारण्य पहुंचा जिस प्रकार हस्ती पर्वत को पीड़ित करने के लिए पहुंचता है | (श्लोक ४११ - ४१२ )