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वहाँ उन्होंने सूर्य किरण के समूह रूप उज्ज्वल सूर्यहास खड्ग को देखा। कौतूहली लक्ष्मण ने उसे हाथ में लेकर म्यान से बाहर निकाला। अपूर्व शस्त्र देखने का कौतूहल तो क्षत्रिय मात्र को होता है। तदुपरान्त उसकी धार की परीक्षा लेने के लिए पार्श्ववर्ती बाँस झाड़ को कमल नाल की तरह एक बार में ही काट डाला। उसी बाँस झाड़ में रहा हुआ शम्बूक का सिर भी बाँस झाड़ के साथ ही कटकर लक्ष्मण के सम्मुख आ गिरा। यह देखकर लक्ष्मण ने बाँस झाड़ में प्रवेश किया। तब उन्होंने लटकता हआ धड़ भी देखा। यह देखकर लक्ष्मण स्वनिन्दा करने लगे-'मुझे धिक्कार है जो कि मैं ऐसा कार्य कर बैठा। जो युद्ध नहीं करे, निरस्त्र हो, निरपराध हो, मैंने ऐसे की हत्या कर डाली है।' फिर वे राम के पास गए और सारी बात बताई और उन्हें वह खड्ग दिखाया। खड्ग देखकर राम बोले, 'इस खड्ग का नाम सूर्यहास है। तुमने इसके आराधक को मार डाला। इसका कोई उत्तर साधक भी निकट ही होगा।
(श्लोक ३७८-३९२) . उसी समय पाताल लङ्का में रावण की बहिन चन्द्रनखा ने सोचा तपस्या की अवधि आज पूर्ण हो गई है। मेरा पुत्र सूर्यहास खड्ग को अवश्य ही सिद्ध करेगा। अतः उसके लिए पूजा की सामग्री और आहार-पानी लेकर मुझे जाना चाहिए। यह सोचकर वह प्रसन्नचित्त वहाँ पहुंची और पुत्र का कटा हुआ मस्तक जिसमें कुण्डल लटक रहे थे देखा। यह देखकर वह, हाँ वत्स शम्बूक, हाँ वत्स शम्बूक, तू कहाँ गया कहती हुई जोर-जोर से चीत्कार करने लगी। उसी समय उसकी दृष्टि मिट्टी पर उभरे लक्ष्मण के मनोहर पदचिह्नों पर पड़ी। जिसने मेरे पुत्र को मारा है यह उसी का पदचिह्न है ऐसा सोचकर वह पदचिह्नों का अनुसरण करती हुई आगे बढ़ी और थोड़ी ही देर में एक वृक्ष के नीचे सीता और लक्ष्मण सहित नयनाभिराम राम को बैठे देखा। राम का सुन्दर रूप देख कर वह तत्काल काम के वशीभूत हो गई। ओह ! महाशोक के समय भी कामिनियाँ किस प्रकार काम के वशीभूत हो जाती है।
___(श्लोक ३९३-३९८) , तदुपरान्त नागकन्या का सुन्दर रूप धारण कर काम पीड़िता चन्द्रनखा रोमांचित कलेवर लिए राम के पास गई। उसे देखकर