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कर ली। उसके माथे पर रत्नांकुर श्रेणी की तरह जटा दिखाई देने लगी। अतः उस दिन से उस पक्षी का नाम जटायु हो गया।
(श्लोक ३२८-३३२) राम ने मुनियों से पूछा, 'गिद्ध पक्षी मांसाहारी और स्थूलबुद्धि होते हैं। पर यह गिद्ध आपके चरणों में गिरकर शान्त कैसे हो गया ?'
(श्लोक ३३३) ... सुगुप्त मुनि कहने लगे, 'बहुत दिनों पहले कुम्भकारकट नामक एक नगर था। वहाँ यह पक्षी दण्डक नामक राजा था। उस समय श्रावस्ती नगरी में जितशत्रु नामक राजा राज्य करते थे। उनके धारिणी नामक रानी से दो सन्तान पैदा हुई । एक पुत्र, एक कन्या । पुत्र का नाम स्कन्दक और कन्या का नाम पुरन्दरयशा था । पुरन्दरयशा का विवाह कुम्भकारकट नगर के राजा दण्डक के साथ हुआ। एक बार राजा दण्डक ने किसी कार्यवश पालक नामक एक ब्राह्मण दूत को जितशत्रु के पास भेजा। उस समय जितशत्रु अर्हत् की उपासना में मग्न थे। सुयोग पाकर दुष्टबुद्धि पालक वहाँ जैन-धर्म को दूषित करने लगा। यह देखकर राजपुत्र स्कन्दक ने दुराशय मिथ्यादृष्टि सम्पन्न पालक को सभ्य संवाद, युक्ति और तर्क द्वारा निरुत्तर कर दिया। इससे सभ्य लोगों में पालक उपहास का पात्र बन गया। फलतः पालक स्कन्दक के प्रति विद्वेष भाव रखने लगा। राजा ने जिनोपासना से निवृत्त होकर पालक को विदा किया। पालक पुनः कुम्भकारकट नगर को लौट गया।
(श्लोक ३३४-३४१) इसके कुछ दिनों बाद स्कन्दक ने संसार से विरक्त होकर पांच सौ राजपुत्रों के साथ मुनि सुव्रत स्वामी से दीक्षा ग्रहण कर ली। तदुपरान्त एक दिन उन्होंने कुम्भकारकट नगर में जाकर पुरन्दरयशा और उसके परिवार को उपदेश देने की इच्छा से अपने गुरु की आज्ञा माँगी। मुनि सुव्रत स्वामी बोले, 'वहाँ जाने पर परिवार सहित तुमको मरणान्तक कष्ट होगा।' स्कन्दक मुनि ने पूछा, 'हे भगवन् ! उस समय हम आराधक होंगे या नहीं ?' प्रभु ने प्रत्युत्तर दिया, 'तुम्हें छोड़कर सभी आराधक होंगे।' 'हे भगवन् ! तब मैं समझगा मेरा सब कुछ पूर्ण हो गया है।' ऐसा कहकर स्कन्दक मुनि ने उनका आदेश लेकर परिवार सहित वहाँ से विहार किया