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________________ 1361 कन्या को देखा। उसे देखते ही हम उसके प्रेम में पड़ गए । उसने हमारे मन पर अधिकार कर लिया। हम लोगों ने राजा के सम्मुख अपनी कला का प्रदर्शन किया। राजा ने उपाध्याय की पूजा कर उसे विदा कर दिया। राजा की आज्ञा से हम माँ के पास गए। वहाँ भी हमने पुनः उस कन्या को देखा। माँ ने कहा, 'यह तुम : लोगों की बहिन कनकप्रभा है। जब तुम लोग घोष उपाध्याय के पास थे तब इसका जन्म हुआ था। इसलिए तुम लोग इसे नहीं जानते।' यह सुनकर हम लज्जित हो गए और अज्ञानवश उसके अनुरागी होने पर भी अनुतप्त हो गए। हमारे मन में वैराग्य उत्पन्न हो जाने के कारण हम गुरु के पास जाकर उसी समय दीक्षित हो गए। तीव्र तप करते हुए हम इस पर्वत पर आए और शरीर ममता विसजित कर कायोत्सर्ग-ध्यान में स्थित हो गए। __ (श्लोक २९८-३०८) 'हमारे पिता हमारे वियोग से दुःखी होकर अनशन मृत्यु वरण कर महालोचन नामक गरुड़पति के रूप में उत्पन्न हुए। आसन कम्पित होने के कारण दुःखित बने वे इसी समय यहाँ आए हैं। (श्लोक ३०९-३१०) ___ 'अन्यत्र पूर्वोक्त अनलप्रभ देव कौतुकवशतः कई देवों को सङ्ग लेकर केवलज्ञानी महामुनि अनन्तवीर्य के पास गए थे। देशना समाप्त होने पर किसी शिष्य ने अनन्तवीर्य से पूछा, 'हे भगवन् ! आपके बाद मुनि सुव्रत स्वामी के तीर्थ में कौन केवलज्ञानी होंगे ?' (श्लोक ३११-३१२) 'प्रत्युत्तर में उन्होंने कहा, 'मेरे निर्वाण के पश्चात् कुलभूषण और देशभूषण नामक दो भाई केवलज्ञानी होंगे।' यह सुनकर अनलप्रभ स्वस्थान को लौट गया। श्लोक ३१३) 'कुछ दिन पश्चात् अवधिज्ञान से हमको उन्होंने यहाँ ध्यान करते देखा । मिथ्यात्व के कारण मुनिवाक्य को मिथ्या करने के लिए और हम लोगों के साथ पूर्वभव का जो वैर था उसका प्रतिशोध लेने के लिए यहाँ आकर घोर उपसर्ग करने लगा। हम पर उपसर्ग करते हुए आज चौथा दिन हो गया है । आज वह आप लोगों के भय से भाग गया है और हम लोगों को भी कर्मक्षय हो जाने के कारण केवलज्ञान उत्पन्न हो गया है। वह देव उपसर्ग
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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