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________________ [135 'उदित और मुदित के जीव ने भी महाशुक्र देवलोक से च्युत होकर भरत क्षेत्र के रिष्टपुर नगर में प्रियम्वद राजा की पद्मावती रानी के गर्भ से रत्नरथ और चित्ररथ नामक पुत्र रूप में जन्म ग्रहण किया। धमकेत ने भी ज्योतिष्क देवलोक से च्यूत होकर उसी राज्य की कनकाभा नामक रानी के गर्भ से अनुद्धर नामक पुत्र रूप में जन्म ग्रहण किया। वह उनका सौतेला भाई था इसलिए वह उनसे ईर्ष्या करने लगा; किन्तु वे लोग उससे ईर्ष्या भाव नहीं रखते थे। (श्लोक २८८-२९१) ___ 'प्रियम्बद राजा रत्नरथ को राज्य और चित्ररथ एवं अनुद्धर को युवराज पद देकर स्वयं दीक्षित हो गए। वे मात्र छह दिन व्रत-पालन कर मृत्यु को प्राप्त हुए और देव रूप में उत्पन्न हुए। (श्लोक २९२) 'एक राजा ने अपनी कन्या श्रीप्रभा चाहने पर भी अनुद्धर को न देकर राजा रत्नरथ' को दी। इससे कुपित होकर अनूद्धर ने युवराज पद त्यागकर रत्नरथ के राज्य में लटपाट प्रारम्भ की। रत्नरथ उसे युद्ध में परास्त कर पकड़ लाया; किन्तु कुछ दिन पश्चात् उसे मुक्त कर दिया। मुक्त होने के पश्चात अनुद्धर तापस बन गया; किन्तु स्त्री संसर्ग रखने के कारण उसकी तपस्या व्यर्थ हो गई। अतः मृत्यु के पश्चात् उसने अनेक भव भ्रमण कर पुनः मनुष्य जन्म प्राप्त किया। मनुष्य जन्म में वह पुनः अज्ञान तप कर मृत्यु के पश्चात् उपद्रवकारी अनलप्रभ नामक देव रूप में उत्पन्न हुआ। (श्लोक २९३-२९७) 'चित्ररथ और रत्नरथ भी क्रमशः दीक्षा ग्रहण कर मृत्यु के पश्चात् अच्युत कल्प में अतिबल और महाबल नामक महद्धिक देव बने । वहाँ से च्यूत होकर सिद्धार्थपुर के राजा क्षेमकर की रानी विमलादेवी के गर्भ में अवतरित हए। अनुक्रम से विमलादेवी ने दो पुत्रों को जन्म दिया। वे दोनों पुत्र हम लोग हो हैं । मेरा नाम कुलभूषण और इसका नाम देशभूषण है। राजा ने हम लोगों को शिक्षा देने के लिए घोष नामक उपाध्याय के पास भेजा। वहाँ बारह वर्षों तक रहकर हमने समस्त कलाओं को अधिगत किया। तेरहवें वर्ष में हम घोष उपाध्याय के साथ ही राजमहल को लौट आए। आने के समय राजप्रासाद के गवाक्ष में एक अनिन्द्य सुन्दरी
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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