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विदेश गया । वसुभूति भी उसके साथ गया और राह में उसने अमृतस्वर की हत्या कर दी । तदुपरान्त वसुभूति नगर लौट आया ओर लोगों से कहने लगा कि अमृतस्वर ने कार्यवश उसे वापस भेज दिया है । फिर उपयोगा के पास जाकर बोला, 'हमारे स्वच्छद विहार में कण्टक रूप अमृतस्वर की मैंने हत्या कर दी है ।' यह सुनकर उपयोगा प्रसन्न हुई और बोली, 'यह तुमने अच्छा किया | अब इन दोनों पुत्रों को भी मार डालो ताकि दुष्टों के हाथों से मुझे मुक्ति मिले।' वसुभूति ने यह स्वीकार कर लिया । दैवयोग से वसुभूति की पत्नी को इस बात का पता चल गया । उसने ईर्ष्यावश यह सब उदित और मुदित को बता दिया । उदित ने क्रोध में आकर उसी क्षण वसुभूति को मार डाला । मृत्यु के पश्चात् उसने नलपल्ली में म्लेच्छ के रूप में जन्म ग्रहण किया । ( श्लोक २७० - २७९ )
'एक दिन मतिवर्द्धन नामक मुनि से विजयपर्व ने मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली । और मुदित भी दीक्षित हो गए ।
उनके
धर्म श्रवण कर राजा साथ हो उदित
( श्लोक २८० )
।
'एक बार उदित और मुदित मुनि सम्मेत शिखर स्थित चैत्यों की वन्दना करने जा रहे थे । राह भूलकर वे नलपल्ली पहुंच गए। वहाँ वसुभूति के जीव ने, जिसने म्लेच्छ रूप में जन्म ग्रहण किया था, उन्हें देखा और पूर्वभव के बंर के कारण मारने दौड़ा । म्लेच्छ राजा ने उसे रोका कारण पूर्वभव में म्लेच्छ पति हरिण थे एवं उदित- मुदित कृषक । उस समय किसी शिकारी के हाथ से उस मृग को मुक्त करवाया था इसीलिए म्लेच्छपति ने इस जन्म में उनकी रक्षा की तदुपरान्त उन मुनियों ने सम्मेत शिखर जाकर वहाँ के चैत्यों की वन्दना की और दीर्घकाल तक पृथ्वी पर विचरण करते रहे । अन्ततः अनशन ग्रहण कर मृत्यु प्राप्त की और महाशुक्र देवलोक में दोनों सुन्दर और सुकेश नामक महद्धिक देव हुए । ( श्लोक २८१-२८५) 'वसुभूति के जीव ने अनेक भवों का भ्रमण कर किसी पुण्ययोग से मनुष्य जन्म प्राप्त किया। उस भव में वह तापस बना । उसी रूप में मृत्यु प्राप्त कर ज्योतिष्क देवलोक में धूमकेतु नामक मिथ्यादृष्टि दुष्टदेव बना । ( श्लोक २८६ - २८७ )