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जाने के समय लक्ष्मण बोले, 'जब लौटकर आऊँगा तब आपकी कन्या का पाणिग्रहण करूँगा ।' ( श्लोक २५६ - २५८ ) राम वहाँ से रात्रि के शेष भाग में यात्रा प्रारम्भ कर सन्ध्या समय वंशशैल नामक गिरि की तलहटी में स्थित बंशस्थल नगर में उपस्थित हुए । वहाँ उन्होंने वहाँ के राजा और समस्त नगरवासियों को भयभीत देखा । उन्होंने एक नागरिक से भय का कारण पूछा । उसने प्रत्युत्तर दिया, 'तीन दिन से इस पर्वत पर रात्रि के समय भयङ्कर अट्टहास सुनाई पड़ता है । उसी अट्टहास के भय से रात्रि के समय समस्त नागरिक अन्यत्र चले जाते हैं और सुबह होते ही यहाँ लौट आते हैं । इस प्रकार इन तीन दिनों से हम भयङ्कर कष्ट भोग रहे हैं ।' तब लक्ष्मण की प्रेरणा से और कौतूहलवश वे पर्वत पर चढ़े - वहाँ उन्होंने कायोत्सर्ग स्थित दो मुनियों को देखा। राम-लक्ष्मण और सीता ने उन्हें वन्दना की तदुपरान्त उनके सामने राम गोकर्ण प्रदत्त वीणा बजाने लगे । लक्ष्मण ग्राम और राग से मनोहर गीत गाने लगे और सीता अङ्गहार र से विचित्र नृत्य करने लगी । ( श्लोक २५९ - २६५ ) सूर्य अस्त हुआ । रात्रि क्रमशः गहन होने लगी । उसी समय अनेक बेतालों की सृष्टि कर अनलप्रभ नामक एक देव वहाँ आया और अट्टहास से आकाश गुञ्जायमान करता हुआ महर्षियों को पीड़ित करने लगा । यह देखकर राम और लक्ष्मण सीता को मुनियों के पीछे बैठाकर काल रूप धारण कर बेतालों को मारने के लिए उद्यत हुए । इनके तेज को सहन नहीं कर सकने के कारण वह देव तुरन्त उस स्थान का परित्याग कर स्वस्थान चला गया । इधर उन दोनों मुनियों को केवलज्ञान उत्पन्न हो गया । देवों ने आकर केवलज्ञान - महोत्सव मनाया । (श्लोक २६६-२६९ )
राम ने उस मुनिद्वय को वन्दना कर उन पर होने वाले उस उपसर्ग का कारण पूछा । तब कुलभूषण नामक मुनि बोले, पद्मिनी नामक नगरी में विजयपर्व नामक एक राजा थे । उनका अमृतस्वर नामक एक दूत था । उनकी उपयोगा नामक पत्नी से उदित और मुदित नामक दो पुत्र थे । अमृतस्वर दूत का वसुभूति नामक एक ब्राह्मण मित्र था । उस पर आसक्त होकर उपयोगा ने अपने पति को मारना चाहा । एक बार अमृतस्वर राजा के आदेश से