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का प्रहार सहन कर सकेगा राजा उसे अपनी कन्या देंगे।' यह सुनकर लक्ष्मण ने एक व्यक्ति से इसका कारण पूछा। वह बोला, 'यहाँ के राजा का नाम शत्रुदमन है । वे बहुत शक्तिशाली हैं। उनकी रानी कनकादेवी की गर्भजात जितपद्मा नामक एक कन्या है । वह कमलनयना और लक्ष्मी के निवास रूप है। उसके पति की शक्ति-परीक्षा के लिए राजा ने यह घोषणा करवाई है; किन्तु आज तक कोई भो ऐसा वर नहीं मिला जो उनका शक्ति-प्रहार सहन कर सके। अतः प्रतिदिन राज-पथ पर यह घोषणा दोहराई जाती है।'
(श्लोक २४१-२४७) __ यह सुनकर लक्ष्मण उसी समय राजसभा में जाकर उपस्थित हए। उन्हें देखकर राजा ने पूछा, 'आप कौन हैं और यहाँ क्यों आए हैं ?' लक्ष्मण ने प्रत्युत्तर दिया, 'मैं राजा भरत का दूत हूं। किसी कारणवश इधर से निकला था। राह में आपकी कन्या के बारे में घोषणा सुनकर उससे विवाह करने आया हूं।' राजा ने पूछा, 'क्या तुम मेरी शक्ति का प्रहार सहन कर सकोगे ?' लक्ष्मण बोले, 'एक ही क्यों, मैं पाँच-पाँच प्रहार सहन करने को तैयार हूं।'
. श्लोक २४०-२५०) उसी समय राजकुमारी जितपद्मा राजसभा में आई और लक्ष्मण को देखते ही मदन के वशीभूत होकर उनसे प्रेम करने लगी। उसने राजा को उन पर शक्ति प्रहार करने का निषेध किया; किन्तु राजा ने उसकी बात नहीं सुनी और लक्ष्मण पर शक्ति के पाँच प्रहार किए । लक्ष्मण ने दो शक्ति को दोनों हाथों में, अन्य दो शक्ति को बगलों में और एक शक्ति को दाँतों द्वारा जितपद्मा के मन सहित ग्रहण कर लिया। जितपद्मा ने तत्काल उनके गले में वरमाला पहना दी। राजा बोले, 'अब इस कन्या को ग्रहण करो।' लक्ष्मण ने उत्तर दिया, 'मेरे अग्रज राम नगर के बाहर उद्यान में हैं । मैं उनके अधीन हूं।'
श्लोक २५१-२५५) यह सुनकर राजा समझ गए कि ये राम और लक्ष्मण हैं। वे उद्यान में गए और नमस्कार कर राम को प्रासाद में ले आए। उन्होंने राम का खूब आदर-सत्कार किया। सामान्य अतिथि ही जबकि पूज्य होते हैं तो उत्तम पुरुषों का तो कहना ही क्या ? उनका सत्कार ग्रहण कर राम ने वहाँ से प्रस्थान किया।