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यही कारण है।' तब राम ने पूछा, 'भरत क्या अतिवीर्य से युद्ध करने का सामर्थ्य रखते हैं जो वे अतिवीर्य की सेवा करने से इन्कार कर रहे हैं ?' दूत ने कहा, 'अतिवीर्य अत्यन्त बलवान् हैं; किन्तु भरत भी उनसे किसी अंश में कम नहीं हैं। इसलिए कहा नहीं जा सकता युद्ध में किसकी विजय होगी?' (श्लोक १९५-२०१)
महीधर ने दूत को यही कहकर विदा कर दिया 'मैं शीघ्र आ रहा हूं।' फिर महीधर ने राम से कहा, 'अल्पबुद्धि अतिवीर्य कितना अज्ञानी है जो मुझे भरत के साथ युद्ध करने को बुला रहा है। मैं एक वहद् सेना लेकर वहाँ जाऊँगा और जाकर भरत से मित्रता व उसके साथ बैर है यह कुछ बिना कहे ही मानो मैं भरत की आज्ञा से ही उसकी हत्या कर रहा हूं उसे मार डालगा।' राम बोले, 'राजन्, आप यहीं रहें। मैं आपकी सेना और पुत्रों के साथ जाऊँगा और जो यथोचित होगा वही करूंगा। महीधर के यह बात स्वीकार कर लेने पर राम लक्ष्मण और सीता सहित महीधर के पुत्रों और सेना को लेकर नन्दावर्त जा पहुंचे । (श्लोक २०२-२०६)
उसी नगर के बाहर एक उद्यान में राम ने सेना का स्कन्धावार स्थापित किया। उस स्थान की अधिष्ठायिका देवी राम के सन्मुख आकर बोली. 'हे महाभाग, आपकी जो इच्छा हो बताएँ ? मैं उसी के अनुरूप कार्य करने को प्रस्तुत हूं।' राम ने कहा, 'मेरे लिए कुछ भी करने की आवश्यता नहीं है।' तब वह देवी बोली, 'यद्यपि आप स्वयं ही सब कुछ कर सकते हैं फिर भी मैं आपका एक उपकार करूगी। लोगों में अतिवीर्य की अपकीर्ति करने के लिए कि वह स्त्रियों द्वारा पराजित हुआ आप लोगों को सैन्य सहित स्त्री रूप में परिवर्तित कर दूंगी।' ऐसा कहकर उस देवी ने स्त्री राज्य की तरह महीधर की सेना को स्त्री रूप में बदल दिया। राम और लक्ष्मण भी सुन्दरी स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गए। तब राम ने द्वारपाल द्वारा अतिवीर्य को कहला भेजा, 'राजा महीधर ने आपकी सहायता के लिए यह सैन्यदल भेजा है।' यह सुनकर अतिवीर्य बोला, 'जब मरणेच्छुक महीधर स्वयं नहीं आया तब मुझे उसकी सेना की कोई आवश्यकता नहीं है। मैं अकेला ही भरत को पराजित कर दूंगा। अतः अपकीति करने वाली इस सेना को तुरन्त यहाँ से विताड़ित करो।' (श्लोक २०७-२१३)