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________________ 1281 लज्जित हो गई। उसने सिर ढककर राम एवं सीता को प्रणाम किया। (श्लोक १८३-१८४) उधर सुबह होते ही महीधर राजा की रानी ने वनमाला को जब प्रासाद में नहीं देखा तो वह करुण स्वर में रोने लगी। महीधर राजा उसे सान्त्वना देकर वनमाला को खोजने निकले । सेना सहित उसे इधर-उधर खोजते हुए उसी उद्यान में उनकी नजर वनमाला पर पड़ी। महीधर की सेना 'मारो-मारो' कहती हई अस्त्र उठाकर अपहरणकारी लक्ष्मण की ओर दौड़ी। उन्हें इस प्रकार आते देख लक्ष्मण क्रुद्ध हो उठे और खड़े होकर भकुटि की तरह धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर शत्रु को नष्ट कर देने वाली टङ्कार की । उस टङ्कार को सुनकर सैनिक क्षुब्ध और त्रासित होकर धरती पर गिर पड़े। केवल महीधर राजा अकेले ही उनके सन्मुख खड़े रहे। उन्होंने गौर से लक्ष्मण को देखा और पहचान गए । बोले, 'सौमित्र धनुष पर से प्रत्यंचा उतार दो। मेरी लड़की के पुण्योदय से ही तुम्हारा यहाँ आना हुआ है।' (श्लोक १८५-१९०) लक्ष्मण ने तुरन्त धनुष से प्रत्यंचा उतार दी। महीधर यह देखकर आश्वस्त हुए। फिर उनकी दृष्टि राम पर पड़ी। वे रथ से उतर कर राम को प्रणाम कर बोले, 'आपके अनुज के प्रति मेरी कन्या का पहले से ही अनुराग था। इसलिए मैंने लक्ष्मण को इसके पति रूप में सोच रखा था। मेरे भाग्य से ही आज इनका मिलन हुआ है। लक्ष्मण-सा जवाई और आपके जैसा कुटम्ब पाना दुर्लभ है। तदुपरान्त वे राम, लक्ष्मण और सीता को अपने प्रासाद में ले आए। (श्लोक १९१-१९४) वे जब वहाँ निवास कर रहे थे तभी एक दिन राजा महीधर की सभा में राजा अतिवीर्य का दूत आया। वह बोला, 'नन्दावर्त के राजा अतिवीर्य ने, जो शौर्य के सागर हैं, राजा भरत के साथ युद्ध छिड़ने के कारण आपको सहायता के लिए बुलवाया है। दशरथ पुत्र भरत की सेना में अनेक राजा आए हैं। इसीलिए महापराक्रमी आपको उन्होंने स्मरण किया है।' तब लक्ष्मण ने पूछा, 'नन्दावर्त के राजा अतिवीर्य के साथ भरत का युद्ध क्यों छिड़ गया है ?' प्रत्युत्तर में दूत बोला, 'मेरे स्वामी भरत की सेवा चाहते हैं; किन्तु भरत ने वह स्वीकार नहीं किया। उनके विरोध और युद्ध का
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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