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काक स्वपल्ली को लौट गया। राम वहाँ से चलते हुए विध्य अटवी का अतिक्रमण कर तापी नदी के तट पर आ पहुंचे।
(श्लोक १२०-१२३) • तापी नदी को पार कर आगे बढ़ते हए उसी देश की सीमा पर स्थित अरुण नामक ग्राम में पहुंचे। सीता को प्यास लगने के कारण वे तीनों ही कपिल नामक एक क्रोधी अग्निहोत्री ब्राह्मण के घर गए। उसकी स्त्री सुशर्मा ने उन्हें बैठने के लिए अलग-अलग आसन दिए और शीतल एवं स्वादिष्ट जल पीने को दिया। उसी समय पिशाच-सा भयङ्कर कपिल घर लौटा। उन्हें अपने घर पर बैठा देखकर क्रोधित हो उठा और अपनी पत्नी से बोला, 'ऐ पापिनी, तूने इन अपवित्र मनुष्यों को घर में क्यों घसाया ? मेरा अग्निहोत्र अपवित्र हो गया। यह सुनकर ऋद्ध हुए लक्ष्मण कपिल को उठाकर हाथी की तरह आकाश में घुमाने लगे। तब राम बोले, 'हे मानद, कीट 'जैसे इस अधम ब्राह्मण पर तुम क्यों कुपित हए हो? छोड़ दो इसे ।' राम के कहने पर लक्ष्मण ने उसे छोड़ दिया। तदनन्तर सीता और लक्ष्मण सहित राम उस गृह का परित्याग कर अन्यत्र चले गए।
(श्लोक १२४-१३१) चलते-चलते वे एक वृहद् अरण्य में प्रविष्ट हुए।। तभी आकाश काले बादलों से घिर गया। वर्षा ऋतु आ गई थी। वर्षा आरम्भ होने पर राम ने एक वटवक्ष के नीचे आश्रय लिया और बोले, 'इस वटवक्ष के नीचे ही हम वर्षाकाल व्यतीत करेंगे।' यह सुनकर उस वृक्ष का अधिष्ठायक यक्ष इभकर्ण भयभीत होकर अपने स्वामी गोकर्ण यक्ष के निकट जाकर उन्हें प्रणाम कर बोला, 'हे प्रभ, अत्यन्त तेजस्वी पुरुषों ने आकर मझे मेरे निवास स्थान से प्रताड़ित कर दिया है। अत: आश्रयहीन होकर मैं आपके पास आया हं। आप मेरी रक्षा करिए। वे मेरे निवास स्थान वटवृक्ष के नीचे ही वर्षाकाल व्यतीत करेंगे।' (श्लोक १३२-१३६)
गोकर्ण ने अवधि ज्ञान से सब कुछ जानकर बुद्धिमान की तरह उससे कहा-'जो तुम्हारे घर आए हैं वे अष्टम वासुदेव और बलभद्र हैं। अत: वे पूजनीय हैं ।' तब गोकर्ण यक्ष उसे अपने साथ लेकर जहाँ राम अवस्थित थे वहाँ आया और रात्रि में ६ योजन दीर्घ और १२ योजन प्रशस्त धन-धान्य भरे उच्च प्राकारों से युक्त