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________________ [119 लेकर ऐसा कहलवाया है ?' (श्लोक ५४) यह सुनकर लक्ष्मण के नेत्र लाल हो उठे, होठ फड़कने लगे। वे बोले-'ओ मूर्ख ! तुम राजा भरत कौन है यह नहीं जानते तो लो मैं अभी उनसे तुम्हारा परिचय करवा देता हूं। उठो, युद्ध के लिए तैयारी करो। मेरी वज्र-सी भुजाओं द्वारा ताड़ित होने पर तुम छिपकली-से बच नहीं पाओगे।' (श्लोक ५५-५६) यह सुनकर सिंहोदर बालक जिस प्रकार भस्माच्छादित अग्नि को स्पर्श करने के लिए तत्पर होता है उसी प्रकार लक्ष्मण के साथ युद्ध करने को, उन्हें मारने को प्रस्तुत हो गया। (श्लोक ५७) तब लक्ष्मण ने हाथियों को बाँधने के आलानस्तम्भ को कमलनाल की भाँति उखाड़कर दण्ड सा उसे हाथ में लिए यमराज की भाँति शत्रुओं को मारने लगे। तदुपरान्त उन्होंने महाबाह हाथी पर चढ़कर हाथी की पीठ पर बैठे सिंहोदर को उसी के वस्त्र से जिस प्रकार गले में रस्सी डालकर बाँध दिया जाता है उसी भाँति बाँध दिया । (श्लोक ५८-५९) ___दशांगपुर के लोग आश्चर्यचकित होकर उस दृश्य को देखने लगे। लक्ष्मण सिंहोदर को उसी अवस्था में खींचते हुए रामचन्द्र के पास ले गए। राम को देखकर सिंहोदर उन्हें नमस्कार करते हुए बोले-'हे रघकूल नायक ! मुझे नहीं मालम था कि आप यहां आए हैं । शायद मेरी परीक्षा लेने के लिए ही आपने ऐसा किया है। देव, यदि आप ही अपना पराक्रम दिखाने के लिए तत्पर हो जाएँगे तब तो मेरा जीवित रहना ही कठिन हो जाएगा। हे स्वामिन् ! मेरा यह अज्ञान-जन्य अपराध क्षमा करें और मुझे क्या करना है बताएँ क्योंकि सेवक पर स्वामी का क्रोध, शिष्य पर गुरु का क्रोध उन्हें शिक्षा देने के लिए ही होता है। (श्लोक ६०-६३) __राम बोले-'वज्रकरण के साथ सन्धि कर लो।' सिंहोदर ने 'तथास्तु' कहकर यह स्वीकार कर लिया। फिर राम की आज्ञा से वज्रकरण वहाँ आए और करबद्ध हो विनयपूर्वक राम के सामने खड़े होकर बोलने लगे-'ऋषभदेव स्वामी के वश में आप लोगों ने बलभद्र और वासुदेव के रूप में जन्म ग्रहण किया है-यह मैंने सुना है। आज सौभाग्य से आप दोनों के दर्शनों का लाभ मिला है। पहले नहीं जानता था; पर अब जान रहा हूं। आप भरतार्द्ध
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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