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________________ 118] कर पत्नी ने उन सब जले हए घरों से मूल्यवान द्रव्य चोरी करके लाने को कहा है। दैवयोग से उसके दुर्वचनों का भी मुझे शुभ फल मिला है जिससे आप जैसे देव पुरुष से साक्षात् हो गया।' (श्लोक ३७-४७) उस दारिद्रय पीड़ित की कथा सुनकर करुणामय रघवंशी राम ने उसे एक रत्नजडित सुवर्णहार दिया। फिर उसे विदा कर वे दशाङ्गपुर गए। नगर के बाहर चन्द्रप्रभ स्वामी का जो चैत्य था वहाँ जाकर उन्हें वन्दन किया और वहीं अवस्थित हो गए। तदुपरान्त राम की आज्ञा से लक्ष्मण दशाङ्गपुर में वज्रकरण के पास गए। कारण सरल व्यक्तियों की यही रीति है। वज्रकरण उन्हें आकृति से उत्तम पुरुष समझकर बोले, 'हे महाभाग, आप मेरा आतिथ्य ग्रहण करें।' लक्ष्मण ने प्रत्युत्तर दिया, 'मेरे अग्रज राम पत्नी सीता सहित नगर के बाहर अवस्थित हैं। उनके भोजन कर लेने पर ही मैं भोजन कर सकता हूं।' तब राजा वज्रकरण नानाविध खाद्य द्रव्य लेकर लक्ष्मण सहित राम के निकट आए। (श्लोक ४२-४७) आहार के पश्चात् राम ने लक्ष्मण को कुछ कहकर सिंहोदर के पास भेजा। लक्ष्मण सिंहोदर के पास जाकर मधुर वचनों में बोले-'समस्त राजाओं को जिन्होंने अपना दास बना लिया है ऐसे राजा दशरथ के पुत्र राजा भरत ने वज्रकरण के साथ विरोध न करने का आपको आदेश दिया है।' यह सुनकर सिंहोदर बोला, 'राजा भरत भी, जो उनका भक्त है उसी पर कृपा करते हैं अन्य पर नहीं। मेरा यह दुष्ट सामन्त वज्रकरण मुझे नमस्कार नहीं करता तब आप ही कहिए मैं इस पर कृपा किस तरह करूँ ?' लक्ष्मण बोले, वज्रकरण, आपके प्रति अविनयी नहीं है। धर्म के अनुरोध पर उसने अन्य को प्रणाम न करने की शपथ ली है। इसी लिए वह आपको प्रणाम नहीं करता । अतः वज्रकरण पर क्रोध न करें। इसके अतिरिक्त राजा भरत का आदेश भी आपको मानना चाहिए। कारण, राजा भरत का आधिपत्य समुद्र पर्यन्त समस्त पृथ्वी पर है।' (श्लोक ४८-५३) लक्ष्मण की बात सुनकर सिंहोदर क्रुद्ध होकर बोला- 'यह भरत राजा कौन है जिसने पागल की तरह वज्रकरण का पक्ष
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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