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________________ [115 सहित सत्यभूति मुनि से दीक्षा ग्रहण कर ली। अग्रज के वनवास करने के कारण सदबुद्धि भरत दुःख भरे हृदय से अर्हतों की पूजा में निरत रहते हुए एक भृत्य की भाँति राज्य की रक्षा करने लगे। (श्लोक ५२८-५३०) पृथ्वी के देव रूपी राम लक्ष्मण व सीता सहित राह में पड़ने वाले चित्रकूट को लांघकर कुछ ही दिनों में अवन्ती देश के एक भाग में जा पहुंचे। (श्लोक ५३१) चतुर्थ सर्ग समाप्त पंचम सर्ग राह में चलते-चलते सीता क्लान्त हो गई। उसे विश्राम देने के लिए राम यक्षपति कुबेर की तरह एक वटवृक्ष के नीचे बैठ गए। फिर चारों ओर देखकर लक्ष्मण से बोले, 'लगता है कि किसी भय से यह स्थान हाल ही में जनहीन हुआ है। कारण, उद्यान की मिट्टी अभी सूखी नहीं है। गन्ने के खेतों में अभी भी गन्ना लगा हुआ है। खलिहानों में अन्न उसी भाँति भरा हुआ है। इससे लगता है कि कुछ दिन पूर्व ही यह स्थान जनहीन हुआ है।' श्लोक १-३) उसी समय एक व्यक्ति को उधर आता देखकर राम ने उससे पूछा-'भद्र ! बता सकते हो यह स्थान अचानक जनशून्य क्यों हो गया ? तुम भी यहाँ से कहीं जा रहे हो ?' प्रत्युत्तर में वह बोला . 'इस देश का नाम अवन्ती है । इसकी राजधानी का नाम भी अवन्ती है। वहाँ सिंह-सा दुस्सह सिंहोदर नामक एक राजा राज्य करता है। उनके राज्य में दशाङ्गपुर नामक एक नगर है। वहाँ वज्रकरण नामक सिंहोदर के एक सामन्त राज्य करते हैं। एक बार वज्रकरण शिकार करने गए। वहां उन्होंने प्रीतिवर्द्धन नामक मुनि को कायोत्सर्ग ध्यान में स्थित देखा। उन्होंने पूछा-'इस घोर अरण्य में आप वृक्ष की भाँति क्यों खड़े हैं ?' प्रत्युत्तर में उन्होंने कहा, 'आत्महित के लिए।' वज्रकरण ने पुनः पूछा, 'इस अरण्य में अनाहार रहकर आप अपना आत्महित कैसे करते हैं ?' योग्य अधिकारी समझकर मुनि ने उन्हें आत्महित का उपदेश दिया। उस उपदेश को सुनकर विचक्षण वज्रकरण ने तत्क्षण श्रावक धर्म • अङ्गीकार कर लिया और यह नियम लिया कि वे अर्हत् देव और
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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