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________________ [113 सामने का पथ महान कष्टदायक है। आप पिताजी को मेरा कुशल समाचार दीजिएगा और भरत की पिताजी और मेरे समान समझ कर सेवा करिएगा।' (श्लोक ४९६-४९९) हम राम के चरणों की सेवा के योग्य नहीं हैं, हम लोगों को धिक्कार है'-ऐसा कहते हुए अश्रुजल से वस्त्रों को भिगोते हुए सामन्तगण बड़े कष्ट से लौटे। (श्लोक ५००) __ जिसे पार करना कठिन है ऐसी नदी को तब राम, लक्ष्मण ओर सीता ने पार किया। सामन्तों ने अश्रु भरे नयनों से उन्हें पार जाते हए देखा। जब वे और दिखलाई नहीं पड़े तब अत्यन्त दुःखी होकर वे अयोध्या लौट गए और सारा समाचार राजा दशरथ को सुनाया। सुनकर राजा भरत से बोले-'वत्स ! राम और लक्ष्मण जब नहीं लौटे हैं तो इस राज्य को अब तुम्हीं ग्रहण करो। मेरी दीक्षा में अब और विघ्न मत डालो।' भरत बोले-'पिताजी ! मैं कदापि राज्य ग्रहण नहीं करूंगा। मैं स्वयं वहाँ जाऊँगा और अपने ज्येष्ठ भ्राता को प्रसन्न कर लौटा लाऊँगा।' (श्लोक ५०३-५०४) उसी समय कैकेयी वहाँ उपस्थित हई और बोली-'स्वामिन्, आपने सत्य की रक्षा के लिए भरत को राज्य दिया है। किन्तु आपके औचित्य वेत्ता इस पूत्र ने उसे ग्रहण नहीं किया। इससे मैं और इसकी अन्य माताएँ दुःखी हो रही हैं। विचार रहित मुझ पापिनी की मूर्खता के कारण ऐसा घटित हआ है। हाय ! आपके पूत्रवान् होते हुए भी यह राज्य अब राजा-विहीन हो गया है। कौशल्या, सुमित्रा और सुप्रभा का दुःखद क्रन्दन सुनकर मेरी छाती फटी जा रही है। हे नाथ ! इसलिए आज्ञा दीजिए मैं भो भरत के साथ जाकर वत्स राम और लक्ष्मण को लौटा लाने का प्रयत्न करू ।' (श्लोक ५०५-५०९) __ राजा दशरथ के सानन्द आज्ञा देने पर कैकेयी भरत और मन्त्रियों को संग लेकर शीघ्रतापूर्वक राम के पास जाने को निकल पड़ी। कैकेयी और भरत छह दिनों के मध्य ही वहाँ पहुंच गए। वहाँ उन्होंने राम, लक्ष्मण और सीता को एक वक्ष के नीचे बैठे देखा। उन्हें देखते ही कैकेयी रथ से नीचे उतरी और 'हे वत्स, हे वत्स' कहती हुईं बार-बार राम का मस्तक चूमने लगी। सीता और लक्ष्मण ने उनके चरण-कमलों में प्रणाम किया। वह उन्हें दोनों
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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