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अपने प्राणों के समान राम, लक्ष्मण और सीता को नगरवासियों ने जब नगर से बाहर जाते देखा तो वे भी अत्यन्त व्याकुल होकर उनके पीछे दौड़ने लगे और क्रूर कैकेयी को भला-बुरा कहने लगे । राजा दशरथ और अन्तःपुर का परिवार स्नेह-रज्जु से बंधे हुए रोते-रोते राम के पीछे चलने लगे । जब राजा और प्रजाजन राम के पीछे नगर से बाहर निकल गए तो लगा मानो समस्त अयोध्या सूनी हो गई ।
( श्लोक ४८४ - ४८७ ) राम ने माता-पिता को समझा-बुझाकर किसी प्रकार नगर को वापिस भेजा। प्रेम भरे समुचित कथनों द्वारा पुरवासियों को भी लौटाया । फिर शीघ्रतापूर्वक लक्ष्मण और सीता सहित अग्रसर हुए । राह में प्रत्येक नगर के प्रत्येक ग्राम ने राम को अपने यहाँ रहने का अनुरोध किया; प्रार्थना अस्वीकार कर राम आगे बढ़ने लगे । उधर भरत ने राज्य लेना अस्वीकृत में सहोदर - विरह को सहन करने में असमर्थ बने अपने ऊपर दोषारोपण करने लगे ।
के
कर दिया । वास्तव वे माँ कैकेयी और
दीक्षा ग्रहण को उत्सुक राजा दशरथ ने ग्रहण करने के लिए लक्ष्मण सहित लौटा लाने के मन्त्रियों को भेजा ।
( श्लोक ४८८ - ४८९ ।
अधिवासी वृद्ध पुरुषों
किन्तु उन सभी की
( श्लोक ४९० )
( श्लोक ४९१ )
राम को राज्य लिए सामन्त और
( श्लोक ४९२ )
राम पश्चिम की ओर जा रहे थे । सामन्तगण अति शीघ्रता से उनके निकट पहुंचे और उन्हें अयोध्या लौटने के लिए राजा दशरथ का आदेश सुनाया । सामन्तों एवं मन्त्रियों के विनीत अनुनय- - विनय के पश्चात् भी राम लौटे नहीं । कारण, महान् पुरुषों की प्रतिज्ञा पर्वत-सी अटल होती है । राम उन्हें बार-बार लौट जाने को कह रहे थे; किन्तु राम को लौटा ले जाने की आशा में वे उनके पीछे-पीछे चलने लगे । ( श्लोक ४९३ - ४९५ ) राम, लक्ष्मण और सीता अग्रसर होते हुए विन्ध्याटवी में वन्य पशुओं के निवास रूप एवं निर्जन और वृक्ष सन्नद्ध प्रदेश में पहुंच गए। वहाँ जाते हुए राह में गम्भीर आवर्त्तयुक्त विपुल प्रवाह वाली गम्भीरा नामक नदी आई । उसके तट पर खड़े होकर राम ने सामन्तों से कहा, आप लोग यहीं से लौट जाएँ । कारण.