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________________ परित्यक्त राज्य को वे किसी प्रकार भी स्वीकार नहीं करेंगे और मेरे इस कार्य से पिताजी को भी कष्ट होगा। पिताजी को दुःख देना मुझे अभीष्ट नहीं है। अतः भरत ही राज्य करें, मैं एक अनुचर की भांति राम के साथ वन जाता हं। (श्लोक ४६६-४७१) ऐसा विचार कर सौमित्र पिता की आज्ञा लेकर अपनी माता सुमित्रा के पास गए। माँ को प्रणाम कर बोले, 'माँ राम वन जा रहे हैं इसलिए मैं भी उनका अनुगमन करूंगा कारण जिस प्रकार समुद्र मर्यादा बिना नहीं रहता उसी प्रकार सौमित्र भी राम के बिना नहीं रह सकता।' (श्लोक ४७२-४७३) __ लक्ष्मण की बात सुनकर हृदय में धैर्य धारण कर सुमित्रा बोली, 'वत्स, राम तो बहुत पहले ही मुझे प्रणाम कर गया है अतः विलम्ब मत करो, शीघ्र जाओ, नहीं तो तुम उससे बहत दूर रह जाओगे।' (श्लोक ४७४-४७५) मां की बात सुनकर लक्ष्मण माँ को प्रणाम कर बोले, माँ तुम धन्य हो। तुम्ही मेरी वास्तविक माँ हो।' (श्लोक ४७६) फिर लक्ष्मण कौशल्या को प्रणाम करने गए। कौशल्या को प्रणाम कर बोले, 'माँ, मेरे अग्रज अकेले वन गए हैं इसलिए मैं भी उनके साथ जाने को उत्सुक हुआ हं, आप मुझे आज्ञा दीजिए। (श्लोक ४७६-४७७) ऐसा सुनकर अश्रु प्रवाहित करती हुई कौशल्या बोली, 'वत्स, मैं भाग्यहीन हूं, मेरी मृत्यु निश्चित है, कारण तुम भी अब मेरा परित्याग कर वन को चले जा रहे हो । लक्ष्मण, राम के विरह से पीड़ित मेरे हृदय को आश्वस्त करने के लिए तुम यहीं रहो।' (श्लोक ४७८-४७९) लक्ष्मण बोले, 'माँ, राम की माता होकर भी आप इतनी अधीर क्यों हो रही हैं ? मेरे अग्रज बहुत पहले चले गए हैं अतः मैं जल्द ही उनके पीछे जाऊँगा। एतदर्थ आप मुझे रोकने की चेष्टा न करें। मैं तो सर्वदा ही राम के अधीन हूं।' ऐसा कहकर उन्हें प्रणाम कर हाथ में धनुष और पीठ पर तूणीर बांधकर लक्ष्मण शीघ्र राम और सीता के पार जाकर उपस्थित हो गए। तदुपरांत तीनों ही मानो वन में विहार करने जा रहे हैं इस प्रकार प्रफुल्लमना नगर से निर्गत हो गए। (श्लोक ४८०-४८३)
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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