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________________ 1101 राम पिता की आज्ञा से वन जा रहा है। उस नरसिंह पुरुष के लिए वह सब कुछ कठिन नहीं है; किन्तु तुम तो जन्म से ही देवी की तरह उत्तम वाहनादि से यात्रा करती थी। तब क्या पैदल चलने का कष्ट सहन कर सकोगी ? कमल के अन्तर्भाग की तरह तम्हारी देह कोमल है। जब तुम धूप आदि से पीड़ित होगी तब तुम्हारे पति को भी कष्ट होगा। फिर भी मैं तुम्हें पति के साथ जाने और अकारण कष्ट सहने के लिए जैसे निषेध नहीं कर पा रही हं कारण तुम पति का अनुगमन कर रही हो, उसी प्रकार सम्मति भी नहीं दे पा रही हूं।' (श्लोक ४५५-४५९) __ कौशल्या का कथन सुनकर प्रातःकालीन विकसित कमल की तरह प्रफल्ल शोक-रहित सीता ने कौशल्या को प्रणाम कर कहा, 'माँ, बादल के पीछे जिस प्रकार बिजली सर्वदा रहती है उसी प्रकार मैं राम के साथ जा रही हूं। राह में यदि कोई तकलीफ हुई तो आपके प्रति मेरी जो भक्ति है वह उसे दूर कर देगी।' ऐसा कहकर कौशल्या को पुनः प्रणाम कर आत्मा में जिस प्रकार आत्माराम का ध्यान किया जाता है उसी प्रकार राम का ध्यान करती हुई वह भी पुरी से निकल गई। (श्लोक ४६०-४६२) सीता को राम के साथ वन जाते देख नगरवासियों का हृदय शोक से भर गया। अत्यन्त गद्गद् कण्ठ से वे बोलने लगे- 'ऐसी प्रगाढ़ पतिभक्ति के लिए सीता आज से, जो रमणियाँ पति को देवतुल्य मानती है उनके लिए दृष्टान्त रूप हो गई है। इस उत्तम सती को कष्ट का जरा भी भय नहीं है। इसने अपने शील से उभय कुल को पवित्र किया है।' (श्लोक ४६३-४६५) राम के वनगमन की बात सुनकर लक्ष्मण की क्रोधाग्नि प्रज्वलित हो उठी। वे मन ही मन सोचने लगे मेरे पिता दशरथ स्वभाव के अत्यन्त सरल हैं; किन्तु स्त्रियाँ स्वभाव से ही सरल नहीं होतीं। नहीं तो कैकेयी ने इतने दिनों तक वर न माँग कर आज हो वर क्यों माँगा? पिताजी ने भरत को राज्य दिया। और अपने ऋण का बोझ उतार कर पितरों को ऋण-भय से मुक्त कर दिया; किन्तु मैं क्यों नहीं अब निर्भीक होकर अपना क्रोध शान्त करने के लिए कुलाधम भरत से राज्य छीनकर राम को लौटा दू; किन्तु नहीं। राम सत्यवादियों में श्रेष्ठ हैं। अतः तृणवत्
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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