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106] नामक पुरोहित का जीव जो कि उसी समय सहस्रार देवलोक में देवरूप से उत्पन्न हुआ था वहाँ आया और बोला, 'हे महानुभाव ऐसा उन पाप मत करिए। आप पूर्व भव में हरिनन्दन नामक राजा थे। उसी समय विवेकपूर्वक आपने प्रतिज्ञा की थी कि आप मांस ग्रहण नहीं करेंगे। तदुपरान्त आपने मेरे (पुरोहित उपमन्यु) कहने से प्रतिज्ञा भङ्ग कर दी। उपमन्यु की स्कन्द नामक एक व्यक्ति ने हत्या कर दी। मृत्यु के पश्चात् वह हाथी बना। उसी हाथी को राजा भूरिनन्दन पकड़ कर ले आए। युद्ध में उस हाथी की मृत्यु हुई। मृत्यु के पश्चात् वह राजा भूरिनन्दन और उनकी पत्नी गांधारी के अरिसूदन नामक पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। यहाँ उसे जातिस्मरण ज्ञान हुआ अतः उसने दीक्षा ग्रहण कर ली। मृत्यु के पश्चात् वह सहस्रार देवलोक में देव रूप में उत्पन्न हुआ, वही मैं हूं।'
(श्लोक ४०२-४०९) 'राजा भूरिनन्दन ने मृत्यु के पश्चात् अजगर के रूप में एक वन में जन्म ग्रहण किया। वहाँ दावानल में दग्ध होकर वे नरक गए। पूर्व स्नेह के कारण मैंने नरक में जाकर उन्हें उपदेश दिया। वहाँ से निकलकर आप प्रतिमाली नामक राजा हुए। पूर्व भव में आपने मांस-त्याग की प्रतिज्ञा भङ्ग की थी उसका इतना दुःखदायक परिणाम हुआ। अतः अब फिर वैसा ही अनन्त दुःखात्मक परिणामयुक्त नगरदाह का कार्य न करें। (श्लोक ४१०-४१२)
_ 'इस प्रकार अपना पूर्वभव अवगत कर रत्नमाली ने युद्ध से विरक्त होकर तुम्हारे (सूर्यञ्जय का) पुन कुलनन्दन को राज्य देकर अपने पुत्र सूर्यञ्जय (तुम) सहित तिलकसुन्दर आचार्य से दीक्षा ग्रहण कर ली। दोनों ही मुनिधर्म पालन कर मृत्यु के पश्चात् महाशुक्र देवलोक में उत्तम देवरूप में उत्पन्न हुए।
(श्लोक ४१३-४१५) 'वहाँ से च्युत होकर सूर्यञ्जय का जीव तुम राजा दशरथ बने और रत्नमाली का जीव राजा जनक बना । पुरोहित उपमन्यु सहस्रार देवलोक से च्युत होकर जनक का छोटा भाई कनक बना और नन्दिवर्द्धन के भव में जो जीव नन्दिघोष नामक तुम्हारा पिता था वह प्रवेयक विमान से च्युत होकर मैं सत्यभूति बना।
(श्लोक ४१६-४१७)