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चूमकर हर्ष के आँसुओं से उसे अभिषिक्त कर दिया।
(श्लोक ३८५-३८८) चन्द्रगति विरक्त हो गए अतः भामण्डल को राज्य देकर सत्यभूति मुनि से दीक्षा ग्रहण कर ली। तब भामण्डल सत्यभूति और चन्द्रगति मुनियों को, जनक, विदेहा (अपने माता-पिता) और राजा दशरथ को प्रणाम कर अपने राज्य को लौट गया। तब राजा दशरथ ने भी सत्यभूति मुनि को प्रणाम कर अपना पूर्वभव जानना चाहा। मुनि ने कहना प्रारम्भ किया
'तुम सेनपुर में भावन नामक महामना वणिक थे। तुम्हारे दीपिका नामक पत्नी से उपास्ति नामक एक कन्या थी। उसने उस जन्म में साधुओं के साथ द्वेषपूर्ण व्यवहार किया जिसके फलस्वरूप तिर्यंचादि महाकष्टदायी योनियों में दीर्घकाल भ्रमण करती रही।
(श्लोक ३८९-३९३) 'अनुक्रम से तुमने चन्द्रपुर के धन्य नामक वणिक की सुन्दरी नामक पत्नी के गर्भ में वरुण नामक पुत्र रूप में जन्म लिया। उस भव में प्रकृति से उदार होने के कारण तुमने साधुओं को श्रद्धापूर्वक खब दान दिया। मृत्यु के पश्चात् वहाँ से तुम धातकी खण्ड के उत्तर कुरु में युगलिक रूप से उत्पन्न हए। वहाँ से देवलोक में जन्मे । देवलोक से च्युत होकर तुमने पुष्कलावती विजय में पुष्कला नगरी के राजा नन्दिघोष और रानी पृथ्वी देवी के पुत्र नन्दिवर्द्धन के रूप में जन्म प्रहग किया। राजा नन्दिघोष तुम्हें राज्य देकर यशोधर मुनि से दीक्षित हो गए। मृत्यु के पश्चात् वे ग्रैवेयक विमान में देवरूप में उत्पन्न हुए और तुम श्रावक धर्म पालन कर मृत्यु के पश्चात् ब्रह्म देवलोक में देव रूप में उत्पन्न हुए।
(श्लोक ३९४-३९९) ___ 'वहाँ से च्युत होकर तुम पूर्व विदेह के पर्वत की उत्तरी श्रेणी के अलङ्कार रूप शशिपुर नामक नगर में विद्याधरपति रत्नमाली की विद्युल्लता नामक पत्नी के गर्भ से दीर्घबाहु सूर्यञ्जय के रूप में उत्पन्न हुए।
(श्लोक ४००-४०१) ___ 'एक बार रत्नमाली गवित विद्याधर बज्रनयन का दमन करने के लिए सिंहपुर गए। वहाँ वे बाल, वृद्ध, स्त्री, पशु और उपवन सहित समस्त नगर को जलाने लगे। उसी समय उपमन्यु