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104] उन्हें वन्दना करने गए और देशना सुनने के लिए उनके निकट बैठ गए।
(श्लोक ३७२-३७३) राजा चन्द्रगति अनेक विद्याधर राजाओं और सीता की अभिलाषा से पीड़ित पुत्र भामण्डल सहित रथावर्त पर्वत पर स्थित अर्हतों की वन्दना करने गए हुए थे। वहाँ से लौटते समय वे उधर से गुजर रहे थे। आकाश पथ से सत्यभूति मुनि को देखकर नीचे उतरे। मुनि को वन्दना कर वे भी उनकी देशना सुनने के लिए उनके सम्मुख जा बैठे। (श्लोक ३७४-३७६)
भामण्डल को सीता की अभिलाषा से सन्तप्त देखकर सत्यशील सत्यभूति मुनि ने समयोपयोगी देशना दी। प्रसङ्गतः पाप से बचाने के लिए उन्होंने चन्द्रगति और पुष्पावती एवं भामण्डल और सीता का पूर्व भव सुनाया और साथ ही तीता और भामण्डल का एक साथ जन्म ग्रहण, भामण्डल का अपहरण आदि वृत्तान्त भी सुनाए ।
(श्लोक ३७७-३७८) यह सुनकर भामण्डल को जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। वह तत्क्षण मूच्छित होकर गिर पड़ा। कुछ देर बाद जब चेतना लौटी तो भामण्डल ने अपना पूर्व भव जैसा मुनि ने बतलाया था वैसा ही स्वयं विवृत किया। इससे चन्द्रगति आदि के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया। सदबुद्धि प्राप्त होने के कारण भामण्डल ने सीता को अपनी बहिन समझ कर प्रणाम किया। सीता ने भी भामण्डल को अपना सगा भाई, जिसका जन्म के समय ही अपहरण हो गया था, जानकर आशीर्वाद दिया। विनयी भामण्डल ने जिसके हृदय में उसी समय सौहार्द उत्पन्न हुआ था जमीन से मस्तक लगाकर राम को प्रणाम किया।
(श्लोक ३७९-३८४) चन्द्रगति ने उत्तम विद्याधरों को मिथिला भेजकर जनक और विदेहा को वहाँ बुलवाया और भामण्डल का जन्म के समय ही जिसका अपहरण हो गया था आपका पुत्र है' कहकर उसके हरण का सारा वृत्तान्त सुनाया। चन्द्रगति का विवरण सुनकर जनक और विदेहा उसी प्रकार हर्षित हो गए जिस प्रकार मेघ की गजना सुनकर मयूर हर्षित हो जाता है। विदेहा के स्तनों से दुग्ध की धार प्रवाहित होने लगी। अपने वास्तविक माता-पिता को पाकर भामण्डल ने उन्हें प्रणाम किया। उन्होंने भी उसका मस्तक