SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 100] यह सुनकर जनक बोले, 'मैंने अपनी कन्या को दशरथ पुत्र राम को दे दी है। अब अन्य को किस प्रकार दूं? कारण कन्या एक बार ही दी जाती है।' (श्लोक ३१९) चन्द्रगति बोला, 'जनक, यद्यपि मैं सीता को हरण कर लाने में समर्थ हूं फिर भी हम दोनों में प्रेम बढ़े यही सोचकर तुम्हें यहाँ लाकर सीता की याचना कर रहा हूं। यद्यपि तुमने अपनी कन्या राम को देने की जबान दी है, फिर भी राम हमको पराजित किए बिना उससे विवाह नहीं कर सकता। युद्ध न हो इसका एक उपाय है। मेरे यहाँ दुस्सह तेजोमय वज्रावर्त और अर्णवावर्त नामक दो धनुष हैं। एक हजार देवता उसकी रक्षा करते हैं। देवों के आदेश से हमारे घर पर उनकी कुलदेवों की तरह पूजा होती है। उन दोनों धनुषों को भावी बलदेव और वासुदेव व्यवहार करेंगे। तुम धनुष ले जाओ। यदि राम उनमें से एक पर भी प्रत्यंचा चढ़ा पावे तो समझ लेना मैं राम से पराजित हो गया हूं। इसके बाद वह सीता के साथ सुखपूर्वक विवाह कर सकेगा। (श्लोक ३२०-३२४) जनक द्वारा ऐसी प्रतिज्ञा करवाकर उसने उन्हें मिथिला पहुंचा दिया। स्वयं भी स्वपरिवार मिथिला गया। साथ में दोनों धनुष भी ले गया। वह धनुष को सभागृह में रखकर स्वयं नगर बाहर अवस्थित हो गया। (श्लोक ३२५) जनक ने सारी बात स्वपत्नी विदेहा से कही। सूनकर शर से आहत होने की तरह विदेहा अत्यन्त दुःखी हो गई। वह रोतेरोते कहने लगी- 'हे देव, तुम अत्यन्त निर्दय हो। तुमने मेरे एकमात्र पुत्र का हरण कर लिया फिर भी तृप्त नहीं हुए। अब तुम मेरी कन्या का भी हरण करना चाहते हो। संसार में कन्याएँ स्वेच्छा से वर वरण करती हैं; किन्तु दैव योग से मेरी कन्या को अन्य की इच्छा से वर ग्रहण करना होगा। अन्य की इच्छा से की गई प्रतिज्ञा के अनुसार यदि राम इस धनुष पर प्रत्यंचा नहीं चढ़ा सके और दूसरा यह काम करे तब तो अवश्य ही मेरी कन्या को अवांछित वर प्राप्त करना होगा। हाय दैव, अब मैं क्या करूँ ?' (श्लोक ३२६-३३०) विदेहा का रुदन सुनकर जनक उसे आश्वस्त करते हुए बोले, 'देवी, तुम डरो मत । मैंने राम का शौर्य देखा है। यह धनुष उसके
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy