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________________ 98] रूप को देखकर सीता मारे भय के 'ओ माँ' कहती हुई वहाँ से उठ कर भीतरी कक्ष में चली गई। सीता का चिल्लाना सुनकर दासियाँ दौड़ती हई आईं और नारद को घेर लिया। वे भी उनका गला, शिखा और हाथ पकड़ कर चिल्लाने लगीं। उनका चिल्लाना सुनकर शस्त्रधारी द्वाररक्षक 'मारो मारो' कहते हुए दौड़कर वहाँ आए। नारद घबड़ा गए । अतः किसी प्रकार उनके हाथों से स्वयं को मुक्त कर आकाश में उड़ गए। फिर वैताढय पर्वत पर जाकर वे सोचने लगे बाघिनों के मुख से गाय जिस प्रकार बड़ी कठिनता से स्वयं को मुक्त कर सकती है उसी प्रकार उन क्रीतदासियों के हाथ से आज तो मैं भाग्यवश ही मुक्त हो सका हूं। इस वैताढय पर्वत पर अनेक विद्याधरपति रहते हैं। इसी पर्वत की दक्षिण श्रेणी में इन्द्र के समान पराक्रमी चन्द्रगति का पुत्र युवक भामण्डल रहता है। सीता का चित्र बनाकर मैं उसे दिखाऊँ । उसे देखकर वह मुग्ध हो जाएगा। और जबरदस्ती सीता को उठा लाएगा। इससे सीता ने मेरे साथ जो व्यवहार किया है उसका प्रतिशोध भी ले सकेगा। (श्लोक २८९-२९७) ऐसा विचार कर नारद ने सीता के उस रूप को जिसे इसके पूर्व त्रैलोक्य में भी कहीं नहीं देखा गया चित्रित कर भामण्डल को दिखाया। उस रूप को देखते ही भामण्डल भूताविष्ट की तरह कामातुर हो उठा। विंध्य पर्वत से पकड़ कर लाए हुए हाथी की तरह उसके नेत्र की नींद जाती रही । वह आहार-पानी का परित्याग कर ध्यान निरत योगी तरह रहने लगा। भामण्डल की यह अवस्था देखकर राजा चन्द्रगति ने उससे पूछा, 'किसी चिन्ता ने तुम्हें आविष्ट कर लिया है या अस्वस्थता-पीड़ित हो या किसी ने तुम्हारी आज्ञा भङ्ग की है या अन्य किसी प्रकार तुम्हें दुःख है ? तुम अपने दुःख का कारण मुझे बताओ।' पिता का कथन सुनकर भामण्डल अन्तरङ्ग और वहिरङ्ग लज्जा से नतमस्तक हो गया। कारण, कुलीन व्यक्ति अपने गुरुजनों के सम्मुख यह बात कैसे कह सकते हैं ? (श्लोक २९८-३०३) किन्तु भामण्डल के मित्रों ने उसके दुःख का कारण पिता को बताया। बोले, 'नारद अङ्कित एक स्त्री का चित्र देख कर भामण्डल की यह अवस्था हो गई है।' यह सुनकर चन्द्रगति ने
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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