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कयान ने भोगासक्ति में मृत्यु प्राप्त कर चिरकाल तक संसार रूपी अटवी में भ्रमण करते हुए चन्द्रपुर के राजा चन्द्रध्वज के पुरोहित धूमशिख की पत्नी स्वाहा के गर्भ से पिंगल नामक पुत्र के रूप में जन्म लिया। पिंगल और चन्द्रध्वज राजा की कन्या अतिसुन्दरी एक ही गुरु से एक साथ पढ़ते थे। वहां दोनों में परस्पर प्रेम हो गया। तब पिंगल छलना का आश्रय लेकर उसका अपहरण कर विदग्ध नगरी में ले गया। कला और विज्ञानहीन पिंगल काष्ठ और तृण विक्रय कर किसी प्रकार उसका भरण-पोषण करने लगा। निर्गुणी और कर ही क्या सकता है ? (श्लोक २२२-२२६)
वहां अतिसुन्दरी को राजपुत्र कुण्डलमण्डित ने देखा । दोनों में प्रेम हो जाने से कुण्डलमण्डित ने उसका अपहरण कर लिया और वह उसे पिता के भय से एक दुर्गम प्रदेश में ले गया और वहां कुटी बनाकर रहने लगा।
(श्लोक २२७-२२८) पिंगल अतिसुन्दरी के विरह में उन्मत्त होकर चारों ओर उसे खोजने लगा। उसी समय आर्यगुप्त नामक एक आचार्य से उसका मिलना हुआ। उनसे धर्म श्रवण कर वह दीक्षित हो गया। दीक्षित होने पर भी उसके मन से अतिसुन्दरी का प्रेम नहीं गया।
(श्लोक २२९-२३०) कुण्डलमण्डित दुर्गम स्थल में रहकर कुत्ते की तरह बार-बार राजा दशरथ के राज्य में लूटपाट करने लगा। राजा दशरथ ने बालचन्द्र नामक एक सामन्त को उसे पकड़ने का आदेश दिया। बालचन्द्र ने उसे बन्दी बनाकर राजा दशरथ के सन्मुख उपस्थित किया। राजा ने कुछ दिनों तक उसे बन्दी रखकर छोड़ दिया। शत्रु के दिन होने पर महान पुरुषों का कोप शान्त हो जाता है।
(श्लोक २३१-२३३) तब कुण्डलमण्डित पितृराज्य प्राप्त करने के लिए स्वराज्य की ओर जाने लगा। राह में मुनिचन्द्र नामक मुनि से धर्म श्रवण कर उसने श्रावक व्रत ग्रहण कर लिया। राज्य की इच्छा लिए मृत्यु होने पर वह मिथिला नगरी के राजा जनक की रानी विदेहा के गर्भ से पुत्र रूप से उत्पन्न हआ।
(श्लोक २३४-२३५) सरसा ईशान देवलोक में देवी रूप में उत्पन्न हुई। वहाँ से च्युत होकर एक पुरोहित की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई। उसका