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[३९ अनुचित कार्य के लिए अनुताप और प्रायश्चित-इन्हीं विभिन्न भावों को दिखाकर उन्होंने दर्शकों को मुग्ध कर दिया।
(श्लोक १२३-१२४) कभी मोटा पेट तो कभी बड़े-बड़े दाँतों वाला, कभी लंगड़ा तो कभी पीठ पर कुञ्जवाला, कभी चपटा नाक तो कभी बड़े-बड़े बाल वाला तो कभी टाट वाला, एक नेत्र वाला, विकृतांग, राख लिपे हए, कमर में घण्टी बांधे व्यक्ति को उपस्थित कर, कभी कांख बजाकर तो कभी नाक से ध्वनि निकालकर, कभी कान या भ्र नचाकर, कभी अन्यों के स्वर की नकल कर, विदूषक या भाँडों के जैसा अभिनय दिखाकर विदग्ध नगर-वासियों को भी वे ग्रामीण लोगों की भाँति हँसाने लगे।
(श्लोक १२५-१२७) ___ भाग्य की विडम्बना दिखाकर, नेत्रों से अश्रु प्रवाहित कर, अयोग्य अनुरोध एवं धरती पर लोटपोट होकर, विलाप कर, पहाड़ से लम्फ प्रदान कर, वृक्ष शाखा से फाँसी में लटक कर, अग्नि व जल में प्रवेश कर, विष पान कर, अस्त्र से आघात कर, छाती पीट कर, अर्थक्षय व प्रियजन की हत्या दिखा कर दुष्ट लोगों की आँखों से भी आँसू प्रवाहित कर दिया।
(श्लोक १२८-१३०) ___ओठ काट कर, नेत्र लाल कर, भृकुटि दिखाकर, कपोलों को कम्पित कर, अंगुलियाँ रगड़कर, मिट्टी को दो भागों में विभक्त कर, अस्त्र निकाल कर, रक्तपात कर, त्वरित आक्रमण से मुष्ट्याघात कर, देह के अङ्ग-प्रत्यङ्ग को कम्पित कर, अश्रु विसर्जन कर, स्त्रियों का अपहरण कर, क्रीतदासियों को अपमानित कर उन्होंने शान्त स्वभावी मनुष्यों को भी क्रोधित कर डाला।
(श्लोक १३१-१३३) स्वाभिमान, दृढ़ प्रतिज्ञा, साहस और अन्य नानाविधि गुणों की अभिव्यक्ति, उदारता, शत्रु के प्रति शौर्य और सत् चरित्र का प्रयास दिखाकर उन्होंने भीरु हृदय में भी साहस उत्पन्न कर दिया।
(श्लोक १३४-१३५) आवर्तित नेत्रों की पुतलियों के भीतर से देखकर, हाथ नचाकर, कण्ठ स्वर भारी कर, देह का रंग विवर्ण कर, भूतों के विभिन्न रूप दिखाकर एवं उनके कण्ठस्वर का अनुकरण कर उन्होंने दर्शकों को मुहर्त भर में भय-विह्वल कर डाला। किसी का ताल सूख गया तो किसी का गला, तो किसी का ओठ, किसी के नेत्रों