________________
३८]
गृह भार और बलवान बैलों पर शकटभार रक्षित होता है उसी प्रकार राज्य भार उपयुक्त मन्त्रियों को अर्पित कर दिया । दमितारि किस प्रकार का व्यक्ति है यह देखने के लिए औत्सुक्य वश वे दोनों विद्यावल से बर्बरी और किराती का रूप धारण कर दूत के पास जाकर बोले, 'हम अपराजित और अनन्तवीर्य द्वारा महाराज दमितारि के पास जाने के लिए आई हैं।' दूत आनन्द चित्त से उन छद्मवेषी क्रीतदासियों को लेकर वैताढय पर्वत पर चला गया और दमितारि के पास जाकर निवेदन किया-'असुर गण जिस प्रकार चमरेन्द्र की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता और देवगण शक्र की आज्ञा का, सर्पगण धरणेन्द्र की और पक्षीगण गरुड़ की उसी प्रकार हे राजन्, रमणीय अर्द्ध में राजन्यवर्ग भी आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते विशेषकर आपके आज्ञाकारी अपराजित और अनन्तवीर्य तो आपकी आज्ञा को मस्तक के भूषण की भाँति ग्रहण करते हैं। नरश्रेष्ठ, इन दोनों बर्बरी और किराती क्रीतदासियों को उन्होंने तत्क्षण उपहारस्वरूप आपको प्रदान कर दिया है।'
(श्लोक १०७-११५) दमितारि ने स्मितहास्य से क्रीतदासियों की ओर देखा । गुणों की बात लोकोक्ति रूप में सूनने पर भी कलाविदों के मन को प्रभावित कर देता है। दमितारि ने उनको अभिनय दिखाने का आदेश दिया। सत्य ही नवीन देखने का आग्रह विलम्ब सहन नहीं कर सकता। दमितारि की आज्ञा मिलते ही वे दोनों प्रसाधनादि क्रियाओं को सम्पन्न कर रङ्गभूमि में आकर उपस्थित हो गयीं। एक नट ने आकर वाद्ययन्त्रों की सहायता से अभिनय प्रारम्भ का नन्दी पाठ किया। नन्दी शेष होने पर प्रत्याहारादि के रूप में नाटक की पूर्व पीठिका उपस्थित की । गायकगण ने विभिन्न परिच्छद धारण कर जात्रि राग में पर्दे के पीछे से आमुख रूप में गीत के छन्द में चरित्रों का परिचय दिया। तदुपरान्त उन्होंने ऐसा अभिनय प्रारम्भ किया जिसमें विभिन्न रसों का समावेश था। कहानी, उपस्थापना, अभिनय, सन्धि और उपसन्धि से अभिनय मनोहारी हो गया।
(श्लोक ११६-१२२) प्रेमी-प्रेमिका में कभी कलह, कभी शान्ति, कभी आनन्द और कभी विच्छेद की वेदना, तो कभी मिलन के लिए विविध चेष्टाएँ,