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अमिततेज ने महाज्वाला को आज्ञा दी कि वह दुष्ट चाहे जितनी दूर चला जाए तुम उसे पकड़ लाओ। तब वह महाज्वाला जो समस्त विद्याओं को नष्ट कर देती है क्रुद्ध भाग्य की तरह अशनिघोष के पीछे दौड़ी। अशनिघोष उससे भागकर जब कहीं भी आश्रय प्राप्त नहीं कर सका तब वह आश्रय के सन्धान में दक्षिण भरतार्द्ध में प्रविष्ट हुआ।
(श्लोक ३५२-३५९) सीमन पर्वत शिखर पर भगवान ऋषभदेव के मन्दिर में जहाँ समवसरण लगा था, गजध्वज उड्डीन की गयी थी, वहाँ पूर्व ज्ञानी अचल बलदेव ने शुद्ध ध्यान में एक रात्रि के लिए प्रतिमा ग्रहण की थी। उसी समय उनका घाती कर्म क्षय होने से, जिसमें सारा विश्व प्रतिफलित हो ऐसा दर्पण-सा केवल ज्ञान उन्हें प्राप्त हुआ। समवसरण उत्सव करने के लिए देवता और राक्षश शीघ्र वहाँ आकर उपस्थित हो गए। अभिनन्दन, जगनन्दन, ज्वलनजटि, त्रिजटि, अर्ककीति, पुष्पकेतु और चारण मुनि विमलमति आदि बलदेव को प्रदक्षिणा देकर वन्दन कर उनके सम्मुख आकर बैठ
(श्लोक ३६०-३६५) ___ महाज्वाला के भय से त्रस्त अशनिघोष ने शान्ति रूप अमृत समुद्र अचल मुनि की शरण ग्रहण की। फलतः महाज्वाला उसका परित्याग कर चली गयीं। केवली के समवसरण में तो इन्द्र का बज्र भी व्यर्थ हो जाता है। उस विद्या ने अमिततेज के पास जाकर समस्त कथा निवेदित की और अपनी विफलता के लिए लज्जा प्रकट की। उसकी बात सुनकर अमिततेज और श्री विजय उसी प्रकार आनन्दित हो गए जैसे मेघ गर्जना सुनकर मयूर आनन्दित हो जाता है । 'सुतारा को शीघ्र ले आओ'-- मरीचि को ऐसा आदेश देकर उद्ग्रीव अमिततेज अपनी सैन्य और श्रीविजय सहित वायुगामी विमान से सीमन पर्वत पर उपस्थित हुए। वहाँ प्रथम भगवान ऋषभदेव का पूजनकर उन्होंने बलदेव की वन्दना की और उनके सम्मुख बैठ गए।
(श्लोक ३६६-३७२) मरीचि चमरचंचा में प्रवेश कर अशनिघोष की माता के प्रासाद में गया। वहाँ शीत द्वारा म्रियमाण कमलिनी-सी, कर्दमलिप्त गाय-सी, अग्नि में झुलसी लता-सी, जाल में आबद्ध हरिणी-सी, आकाश में स्थित चन्द्र की एकांश कला-सी, तट पर