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ली । दीर्घकाल तक उन्होंने तलवार की धार से महाव्रतों की रक्षा की और मृत्यु के पश्चात् अच्युत कल्प में इन्द्र रूप में जन्म ग्रहण किया । कारण, सामान्य तप भी व्यर्थ नहीं जाता । ( श्लोक २ - ५ )
जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में अमरावती-सा हस्तिनापुर नामक एक नगर था । वहां इक्ष्वाकुवंशीय पद्मोत्तर नामक एक राजा राज्य करते थे । वे पद्मा के निवास रूप पद्मद्रह के कमल तुल्य थे । उनकी पटरानी का नाम था ज्वाला । वे विविध गुणों से उज्ज्वल अन्तःपुर की अलङ्कार तुल्य थीं और रूप में देवियों को भी मात करती थीं । सिंह स्वप्न द्वारा सूचित उनके विष्णुकुमार नामक प्रथम पुत्र ने जन्म ग्रहण किया । रूप में वे तरुण देवतुल्य थे । ( श्लोक ६-९ ) प्रजापाल का जीव अच्युत देवलोक का आयुष्य पूर्ण होने पर वहां से च्युत होकर रानी ज्वाला के गर्भ में प्रविष्ट हुआ । चौदह महास्वप्नों द्वारा सूचित होकर ज्वाला रानी ने द्वितीय पुत्र को जन्म दिया । उसका नाम महापद्म रखा गया । वह समस्त श्री का निवास रूप था। दोनों भाई क्रमशः बड़े हुए और गुरु से समस्त कला की शिक्षा ली । महापद्म चकवर्ती राजा होगा जानकर राजा ने उन्हें युवराज पद पर अभिषिक्त किया । ( श्लोक १० - १३ )
उसी समय उज्जयिनी नगर में श्रीवर्मा नामक एक राजा राज्य करते थे। उनके नमूची नामक एक मन्त्री था । एक बार मुनिसुव्रत स्वामी के शिष्य आचार्य सुव्रत वहां आए । प्रासाद के ऊँचे झरोखे से राजा श्रीवर्मा ने नगरवासियों को बड़े धूमधाम से वे जहां अवस्थित थे उधर जाते देखकर नमूची से पूछा - 'महा धूमधाम से ये नगरवासी कहां जा रहे हैं ?' नमूची ने उत्तर दिया'कुछ मुनि नगर के बाहरी उद्यान में अवस्थित हैं, ये सब उन्हें ही वन्दना करने और उनका उपदेश सुनने जा रहे हैं ।' राजा का मन था स्वच्छ और निर्मल । अतः वे बोले – 'चलो, हम भी चलें ।' नमूची ने कहा - 'आप यदि धर्म श्रवण करना चाहते हैं तो मैं ही आपको धर्म सुनाऊँ ।' राजा ने कहा - ' फिर भी मैं वहां जाऊँगा ।' तब नमूची बोला - 'आप वहां तटस्थ रहिएगा । मैं बाद में उन्हें परास्त और निरुत्तर कर दूँगा । क्योंकि विधर्मियों का मत साधारण जनता में विस्तृत हो रहा है ।' ( श्लोक १४ - २१ ) राजा मन्त्री व परिवार सहित आचार्य सुव्रत के पास गए ।
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