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प्रत्युत्तर में उन्होंने सुभूम का नाम बताया । मेघनाद ने तब उसी आश्रम में आकर सुभूम के साथ पद्मश्री का विवाह कर दिया और स्वयं उसकी सहायता के लिए वहां रह गया । जो समग्र पृथ्वी का अधीश्वर होगा ऐसे सुभूम ने कूपवासी मण्डुक की तरह एक दिन अपनी मां से पूछा - ' मां, क्या पृथ्वी इतनी ही है जिस पर हम रहते हैं ?' मां ने कहा - 'पुत्र पृथ्वी बहुत बड़ी है । यह आश्रम तो पृथ्वी का एक कण मात्र है । इसी पृथ्वी पर हस्तिनापुर नामक एक नगर है। वहां तुम्हारे पिता कृतवीर्य राज्य करते थे । परशुराम ने तुम्हारे पिता की हत्या कर उसी राज्य पर अपना अधिकार कर लिया है । उसी ने इस पृथ्वी को बार-बार निःक्षत्रिय कर दिया है । उसी के भय से मैं यहां रहती हूं।' यह सुनकर क्रुद्ध हुए प्रज्वलित मौम की तरह सुभूम हस्तिनापुर नगर गए । क्षत्रिय तेज सहना कठिन होता है। वहां वह पहले दानशाला में गया और सिंह की भांति वहां रखे सिंहासन पर बैठकर उन दांतों को जो कि उनके प्रताप से खीर में परिणत हो गयी थी पान किया । तब ब्राह्मणों ने जो कि उस थाल की रक्षा कर रहे थे, सुभूम पर आक्रमण किया । मेघनाद जो कि सुभूम के साथ ही आए थे, उन्होंने बाघ जैसे हरिणी की हत्या करता है उसी प्रकार उनकी हत्या कर डाली । रक्षकगण मारे गए सुनकर क्रुद्ध परशुराम मानो यमपाश से आकृष्ट हुए हों उसी प्रकार दौड़े आए और सुभूम पर परशु निक्षेप किया; किन्तु वह परशु जल में गिर जाने से स्फुलिंग जैसे बुझ जाता है उसी प्रकार सुभूम के समीप जाते ही बुझ गया । अस्त्राभाव में सुभूम ने उसी थाल को उठाया जो कि देखते-देखते चक्र में परिणत हो गया । पुण्योदय से क्या सम्भव नहीं है ? तब अष्टम चक्रवर्ती सुभूम ने उसी चक्र से परशुराम का मस्तक काट ( श्लोक ८८ - १०० )
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डाला ।
परशुराम ने जिस प्रकार सात बार पृथ्वी को निःक्षत्रिय कर दिया था सुभूम ने उसी प्रकार पृथ्वी को इक्कीस बार ब्राह्मणहीन कर डाला । रक्त की नदी प्रवाहित कर और रथी, गज, अश्व और पदातिकों की हत्या कर उन्होंने पहले पूर्व दिशा को जीत लिया । मृत सैनिकों की देह द्वारा अलंकृत पथ से होकर यम के अनुरूप उन्होंने दक्षिण दिशा को जीत लिया । समुद्र तीर को