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[१०३ और निमग्ना नदियों पर वर्द्धकी रत्न द्वारा सेतु निर्माण किया यद्यपि उन नदियों को पार करना दुष्कर था फिर भी उन्होंने सैन्य सहित उन नदियों को पार किया । शक्तिशाली के लिए सब कुछ सहज है । सूर्य के प्रताप से प्रभात में जैसे कमल की पंखुड़ियाँ खुल जाती है उसी प्रकार उनके प्रताप से गुहा द्वार पर उनके उपस्थित होते ही वह उत्तर द्वार अपने आप खुल गया । उस द्वार से वे सैन्य सहित गुहा से बाहर निकले । शक्तिशाली का पथ नदी के पथ की तरह ही निर्बाध होता है । ( श्लोक १६३ - १७२)
चक्री को सैन्य सहित निकलते देख म्लेच्छगण एकत्र होकर इस भांति बोलने लगे - ' सिंह रक्षित स्थान में हस्ती के प्रवेश की भांति मृत्यु की कामना कर कौन यहाँ प्रवेश कर रहा है ? पदातिक सेना जो गर्दभ की भांति धूलि से आवृत होकर स्वयं को सचमुच की सेना समझकर फलांगे लगा रही है वे कौन हैं ? वृक्ष पर स्थित मर्कट की तरह हस्ती पृष्ठ पर आरूढ़ होकर कौन आ रहा है ? स्रोत में प्रवाहित जल पक्षियों को तरह कौन अश्व पर चढ़े हुए हैं ? पंगु की तरह रथ पर कौन बैठे हैं ? और यह लौह पिण्ड क्या है जो चत्राकृति है और जिससे अग्नि शिखाएँ निकल रही है । सियार की तरह ये सब मूर्ख मनुष्य हमारे साथ विवाद करने आ रहे हैं ? अधिक क्या बोलना है शत्रु तो विष की भाँति होता है । इसीलिए कौए जैसे पतंगों को विनष्ट कर देते हैं हम भी उसी प्रकार इन्हें विनष्ट कर डालें । ( श्लोक १७३-१७९)
परस्पर इस प्रकार बोलते हुए, चक्री की अग्रगामी सैन्य से युद्ध करने के लिए नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र हाथ में लिए वे अग्रसर हुए । लोह मुद्गर लिए दीमक के घरों की तरह उन्होंने अपने हाथियों को जमीन पर सुला दिया । लट्ठ मार-मारकर मिट्टी के घड़े या बर्तनों की तरह रथों को चूर-चूर कर दिया । शूकर मांस को पकाने के लिए जैसे शल्य से उसे विद्ध करना पड़ता है उसी प्रकार तीर व बरछी से अश्व को विद्ध कर डाला । मन्त्रों द्वारा
भूतों को विमोहित करने की तरह बड़े-बड़े लौह कीलकों से उन्हें विमोहित कर डाला । दुर्विनीत किरातों ने बन्दर की तरह कूद-कूद कर विभिन्न प्रकार से उनकी हत्या कर, कुचल कर, थप्पड़ मारमार कर, चीत्कार कर, चक्री की अग्रगामी सेना को वन - विध्वंस