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सच्चरित्रता का परित्याग कभी विचारों में भी नहीं करती थीं। वाह्य अलङ्कार का मूल्य ही क्या होता है ? जब वे अलङ्कार धारण करती तब अलङ्कार भी अलंकृत होते; किन्तु स्वाभाविक सौंदर्य के कारण वे भार स्वरूप ही प्रतीत होते थे। उनका प्रतिरूप केवल दर्पण में ही मिल सकता था, अन्यत्र कहीं नहीं। उनके अङ्ग अङ्ग से शील व सौन्दर्य प्रवाहित होता था। उन्होंने सद्गुण से अलंकृत होकर पिता, माता और पति के तीनों कुलों को एक साथ अलंकृत किया था। वे एक होकर भी अनेक थीं। (श्लोक १०-१४)
राजा की शिखिनन्दिता नामक एक और पत्नी थी। वह मेघ की तरह मन-मयूर को आनन्दित करती थी। (श्लोक १५) ___कालक्रम से राजा के साथ सुखभोग करते हुए रानी अभिनन्दिता गर्भवती हुई। गर्भधारण के समय उन्होंने सूर्य और चन्द्र को अपनी गोद में खेलते हुए देखा। यह स्वप्न सुनकर राजा बोले, तुम्हारे श्रेष्ठ युगल पुत्र होंगे। समय पूर्ण होने पर रानी अभिनन्दिता ने सूर्य चन्द्र-से दीप्तिमान दो पुत्रों को जन्म दिया। राजा श्रीसेन ने उत्सव कर उन दोनों का नाम रखा इन्दुसेन और बिन्दुसेन । माली जिस प्रकार लगाए हए वक्षों की सेवा करता है उसी प्रकार धात्रियों द्वारा पालित होकर वे राजा की दोनों बाहुओं-से क्रमशः बढ़ने लगे। तब राजा उनके नाम की तरह शिक्षक द्वारा ज्ञानविज्ञान व्याकरण आदि की शिक्षा देने लगे। सामरिक विद्या और अन्यकलाओं में भी वे पारंगत हो गए। व्यूह प्रवेश और व्यूह निर्गमन की शिक्षा भी उन्होंने प्राप्त कर ली। क्रमशः जो सर्वांग को पुष्ट कर प्रेम रूपी कमल को प्रस्फुटित करने में ऊषा रूप है ऐसे यौवन को वे प्राप्त हुए।
(श्लोक १६-२३) भरत क्षेत्र के मगध देश में अचल ग्राम नामक एक समृद्धिशाली और अग्रगण्य ग्राम था। उस ग्राम में ब्राह्मणश्रेष्ठ धरणीजट नामक एक ब्राह्मण रहता था । वेद वेदांगों के ज्ञाता होने के कारण उनकी ख्याति सर्वत्र थी। उनकी यशोभद्रा नामक एक पत्नी थी। वह सद्गुण सम्पन्ना कल्याणकारिणी और रूप में गहलक्ष्मी जैसी थी। कालक्रम से उसने गृह उज्ज्वलकारी दो पुत्रों को जन्म दिया। ज्येष्ठ का नाम नन्दीभूति और कनिष्ठ का नाम श्रीभूति था। ब्राह्मण के कपिला नामक एक दासी थी। दीर्घकाल तक गुप्त रूप